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________________ 28 ] संस्कृत-प्रवेशिका [2: सण्धि विसर्ग-सन्धि ] 1: व्याकरण [26 चालचलति / रामः + तिष्ठति - रामस्तिष्ठति / विष्णु: +त्राता-विष्णुस्त्राता। रामः + टङ्कारयति - रामष्टङ्कारयति / - (ख) वा शरि (:+श-:, स्)-विसर्ग को विकल्प से विसर्ग (अथवा 'स्') ही रहता है, यदि बाद में 'शर' हो।' जैसे-कविः + शृणोति-कविः शृणोति, कविश्शृणोति / हरि+शेते-हरिः शेते, हरिश्शेते। रामः +षष्ठः = रामःषष्ठः, रामष्षष्ठः / छात्राः+सन्ति-छात्राः सन्ति, छात्रास्सन्ति / गुणाः +षद् - गुणाःषट्, गुणाषट् / नोट-यह सूत्र विसर्जनीयस्य सः' सूत्र का ही विशेष विधान करता है। 4. उत्व-विधान ( अकारोत्तरवर्ती विसर्ग को उत्व-विधान): (क) अतो रोरप्लतादप्लुते (अ+:+अ-3)-विसर्ग ( सकार-स्थानीय '6'-'2) को 'उ' होता है, यदि उसके पहले और बाद में ह्रस्व (अप्लुत) अकार हो। जैसे-रामः + अस्ति-रामोऽस्ति / शिवः + अच्र्यः-शिवोऽयः / सः + अपि - सोऽपि / कः + अपठत् - कोऽपठत् / . नोट-विसर्ग को 'उ' होने पर 'गुणसन्धि' और 'पूर्वरूपसन्धि' भी होंगी। (ख) हशि च (अ+:+हा -उ)-विसर्ग (सकार-स्थानीय 'क'- ''1) को 'उ' होता है, यदि उसके पहले 'अ' हो और बाद में 'हश् ( वर्ग के 3, 4, 5, ह य च र ल) वर्ण हो। जैसे-देवः + जयति-देवो जयंति / शिवः + वन्धः-शियो वन्यः / बालः + लिसति = बालो लिखति / शिष्यः + हसति -शिष्यो हसति / रामः + गच्छति - रामो गच्छति। नोट-विसर्ग को 'उ' होने पर गुणसन्धि भी होती है। . 5. यत्व-विधान (अम्' से पूर्ववर्ती विसर्ग को यत्व-विधान): भोभागो अघो अपूर्वस्य योऽशि (भो, भगो, अधो, अ, आ++ अश् - य)-विसर्ग , सकार-स्थानीय ''-'") को 'यु' होता है, यदि विसर्ग के पहले भो, भगो, अधो, अ, आ हो और बाद में 'अश्' (वर्ग के 3-5, 1. खपरे शरि वा विसर्गलोपो बक्तव्यः (पा)-विसर्ग के बाद 'शर' हो और उसके बाद 'खर' हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है। जैसे-रामः + स्थाता-रामस्थाता; बाहुः + स्फुरति = बाहुस्फुरति / 2. मौलिक 'र' होने पर 'र' ही रहेगा। जैसे--प्रातर्+अत्र प्रातरत्र / पुनर् + अपृच्छत् - पुनरपृच्छदः पुनर् + अयम् -पुनरयम् / 3. मौलिक 'र' होने पर 'र' ही रहेगा। जैसे-प्रातर् + गच्छ-पातर्गच्छ / पुनर्+वन्धः - पुनर्वन्धः / 4. मौलिक '' होने पर 'र' ही रहेगा। जैसे-प्रातः + आगतः प्रातरागतः स्वर्गतः / ह, य, व, र, ल ) हो / जैसे-देवाः+ इह - देवायिह, देवा इह / अघोः + पाहिअघो याहि / नरः+इच्छति - नरपिच्छति, नर इच्छति / देवाः + गच्छन्ति देवा गच्छन्ति / भो:+देवाः भो देवाः / देवाः+जयन्ति-देवा जयन्ति / छात्राः + आगछन्ति = छात्रायागच्छन्ति, छात्रा आगच्छन्ति / नोट-(१) हलि सर्वेषाम् ( 8.3.22) यदि 'म्' के बाद व्यजन हो तो 'यू' का नित्य लोप हो जाता है यदि स्वर हो तो विकल्प से लोप होता है।' (2) 'य' का लोप होने पर फिर अन्य दीर्घ आदि सन्धियाँ नहीं होंगी। (3) उत्व-विधायक सूत्रों की प्रवृत्ति न होने पर ही यह सूत्र प्रवृत्त होगा 6 'र' लोप व दीर्घ-विधान (विसर्ग-स्थानीय 'र' का लोप व दीर्घ-विधान): (क) रोरि (र+र-पूर्व 'र' का लोप)-'र' (विसर्ग-स्थानीय) का लोप होता है, यदि बाद में भी 'रकार' हो / 'र' का लोप होने पर अगले सूत्र 'ढलोपे०' से दीर्घ होगा। जैसे-पुनर + रमते-पुना रमते / हरिर+राजते-हरी राजते। (ख)ढलोपे पूर्वस्य दीर्घोऽण: (अ, इ, उ+'दर' लोप-दीर्घ)-'द' या '' का लोप होने पर पूर्ववर्ती 'अण' (अ, इ, उ) को दीर्घ होता है। जैसे-पुनर + रमते - पुना रमते / हरिः>हरिर् + रम्यः = हरी रम्यः / शिशु:>शिशुर् + रोदिति।. = शिशू रोदिति / अन्तरराष्ट्रियः = अन्ताराष्ट्रियः / ७.विसर्ग (सु) लोप-विधान ('एतत्' 'तत्' सम्बन्धी 'सु' का लोप-विधान): एतत्तदोः सुलोपोऽकोरनसमासे हलि (एषः, सः +हल = विसर्ग लोप)-'एषः' ( एतत् ) और 'सः' ( तत् ) के विसर्ग (सु) का लोप होता है, यदि बाद में कोई 1. लोपः शाकल्यस्य (8. 3. १६)-अ, आ+पदान्त य व् + अश् विकल्प से य, व लोप / जैसे-देवा+इह देवायिह, देवा इह / ते+आगताः तयागताः त आगताः / रात्री+आगताः रात्रावागताः, रात्रा आगताः / ती+ईश्वरीताबीश्वरी, ता ईश्वरी। विष्णो+इह-विष्णविह, विष्ण इह / विशेष-देखिए, अयादि-सन्धि / 2. अपवाद-मनस (3)+ रथः = मनोरथः / यहाँ 'रोरि' से 'र' का लोप प्राप्त था और 'हशि च' से 'उत्व' प्राप्त था। ऐसी स्थिति में 'विप्रतिषेधे पर कार्यम्' (1.4.2) से 'र' लोप की प्राप्ति हुई परन्तु 'पूर्वत्रासिद्धम् (देखिए-अयादि, सन्धि ) के नियमानुसार 'हशि च' से 'उ' होकर 'मनोरथः सिद्ध हुआ। 3. (क) 'द' लोप का दृष्टान्त-लिद+: लीढः ( वे दो चाटते हैं)। उद् + = ऊढः / यहाँ 'ढ' का लोप 'ढो ढे लोपः' (8. 3. 13) सूत्र में हुआ है। (ख) अण् ही को दीर्घ होगा; अन्य को नहीं होगा / जैसेतृत् + ढ-दृढः (मारा) / वृद्धः ( उद्यत)।
SR No.035322
Book TitleSanskrit Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherTara Book Agency
Publication Year2003
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size98 MB
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