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________________ 26 ] संस्कृत-प्रवेशिका [2: सन्धि त्वं+करोषि त्वङ्करोषि, स्वं करोषि / नदीं + तरति-नदीन्तरति, नदीं तरति / फलं +चिनोति = फलचिनोति, फलं चिनोति / जलं + पिबति जलम्पिबति, जन पिबति / मधुरं + गायति- मधुरङ्गायति, मधुरं गायति / / 8. मुडागम-सन्धि (पदान्त ङ, ण, न् की स्वर के साथ सन्धि): ' मी ह्रस्वादचि ङमुण नित्यम् (ह्रस्व स्वर+म् + अच्-मुडागम )पदान्त 'इम' (इन् ) के पहले यदि ह्रस्व स्वर हो और बाद में कोई भी स्वर हो तो न्युड़ागम (क्रमशः इग्न ) होता है। जैसे-जानन् + अपिजाननपि, प्रत्यक आत्मा-प्रत्यङहात्मा, सुगण + ईशः - सुगण्णीशः, राजन् + आगल्छ - राजनागच्छ, तस्मिन् +अद्रौ तस्मिन्नद्रौ, धावन् + आगच्छतिधावनागच्छति / 9. तुगागम-सन्धि (ह्रस्व स्वर की 'छ' के साथ सन्धि): छे च ( ह्रस्व स्वर +छ- तुगागम)-ह्रस्व स्वर के बाद यदि 'छ' हो तो ''(तुक) का आगम होता है। जैसे -शिव+छाया - शिवच्छाया, संस्कृत+ धाषा:- संस्कृतच्यात्राः वृक्ष+छाया-वृक्षच्छाया, हरि+छाया-हरिच्छाया। (ग) विसर्ग सन्धि ( Euphonic changes in Visarga) १...रुत्व-विधान ( पदान्त 'स्' और सजुष के 'ए' को रुत्व-विधान ) ससजुषो कः (पदान्त 'स्', सजुष का ''> 1)-पदान्त 'स्' और सजुष के 'ए' को 'र' (') होता है। जैसे-रवि+स् (सु)+एव-रविरेव, भानु+स (सु)+ उदयः-भानुरुदयः, हरि+स् (सु)+गच्छति -हरिगच्छति। राम+स (सु) रामर ( रामः)। सजुष् + मेद्यति सजूपेंद्यति, सजुष् - १>सजुर् - सजुः कवि + स्(सु) +अयम् -कविरयम् / मोट-(१) (पदान्त स् + पूर्णविराम %)-पदान्त 'स्' को 'ह' होने के बाद अगले सूत्र 'खरवसा०' से '' को विसर्ग हो जाता है, यदि बाद में पूर्ण..विराम हो। (2) यदि पदान्त 'स्' के पूर्व 'अ' 'आ' को छोड़कर कोई अन्य स्वर हो और बाद में 'अ' वर्ण हो तो 'र' बना रहता है, अन्यत्र' अन्य-अन्य नियमों से अन्य-अन्य कार्य होंगे। 2 विसर्ग-विधान ( पदान्त 'रु' को विसर्ग-विधान ): खरवसानयोविसर्जनीयः ( पदान्त + खर्, पूर्णविराम-)-पदान्त '" 1. यदि 'छम्' के पहले दीर्घ स्वर होगा तो ङमुडागम ( 'डम्' को द्वित्व ) नहीं होगा। जैसे-देवान् + अत्र-देवानत्र / पदान्ताद्वा (६.१.५६)-पदान्त में यदि दीर्घ स्वर हो तो विकल्प से तुगागम होगा / जैसे-लक्ष्मी + छाया- लक्ष्मीच्छाया, लक्ष्मी छाया / विसर्ग-सन्धि ] 1: व्याकरण [27 (रु)को विसर्ग (:) होता है, यदि बाद में 'खर' (वर्ग के 1,2 श ष स ), अथवा पूर्ण-विराम हो। जैसे-पुनर् + पृच्छति-पुनः पृच्छति / राम + कथयति-रामः कथयति / हरि+सु>>-हरिः / शिवर्>शिवः / 3. मत्व-विधान (विसर्ग को सत्व-विधान ): (क) विसर्जनीयस्य सः (: +खर् = स्)-विसर्ग को 'स्' होता है, यदि बाद में 'खर' वर्ण हो। जैसे-गौः+चरति - गौश्चरति, बालः + चलति१. (क) कुप्वोःक पीच (5. 3. ३७)-विसर्ग के बाद यदि 'क ख पफ' हो तो विसर्ग को 'विसर्ग' अथवा 'अर्ध-विसर्ग' (क ख' के होने पर जिह्वामूलीय और 'प फ' के होने पर उपध्मानीय ) विकल्प से होता है। जैसे-कः+करोति-क: करोति, क-करोति; कः +पठति = कः पठति, क.: पठति / काखनति फलति वा। (ख) पाशकल्पककाम्येविति वाच्यम् (वा.)-बाद में 'पाश', 'कल्प', 'क' और 'काम्य' शब्द हों तोविसर्ग को 'म्' हो। जैसे----यशः + कल्पम् यशस्कल्पम्; यशस्काम्यति; पयस्पाशम्; यशस्कम् / परन्तु 'प्रातः+कल्पम् - प्रातःकल्पम् ही होगा। (ग) इणः षः (8. 3. ३६)यदि 'इण्' (इ, उ) के बाद विसर्ग हो तो 'ष' होता है / जैसे-सपिः+पाशम् - सर्पिष्पाशम, सर्पिष्कल्पम्, सपिच्कम्, सपिष्काम्यति / (घ) नमस्पुरसोर्गत्योः (८.३.४०)-'नमः और 'पुरः' शब्दों के विसर्ग को 'ए' होता है, यदि बाद में करोति', 'कृत्य आदि शब्द हों। जैसे-नमः + करोति-नमस्करोति पुरस्करोति, पुरस्कृत्य / (क) इदुदुपधस्प चाऽप्रत्ययस्य (८.३.४१)-उपधा में 'उ' हो और अप्रत्यय सम्बन्धी विसर्ग हो तो उसे 'ए' होता है / जैसे-दुः+कृतम् - दुष्कृतम्: आविष्कृतम् / प्रत्यय-संबन्धी विसगे हो तो-अग्निः+करोति-अग्निः करोति / (च) तिरसोऽन्यतरस्याम् ( 8. ३.४२)--'तिरः' के बाद 'कवर्ग' हो तो विकल्प से 'स्' होता है। जैसे-तिरस्कर्ता, तिरःकर्ता / (छ) द्विस्त्रिश्चतुरितिकृत्वोऽर्थे। इसुसोः सामर्थ्य (8. 3. ४३-४४)-'द्विः', 'त्रि.', 'चतुः' तथा 'इस् उस्' प्रत्ययान्त शब्दों के विसर्ग को विकल्प से 'ए' होता है। जैसे-द्विष्करोति, द्विः करोति; सर्पिष्करोति, सपिः करोति; धनुष्करोति, धनुःकरोति / (ज) नित्यं समासेऽनुत्तरपदस्थस्य / अतः कृकृमिकस कुम्भपात्रकुशाकर्णीष्वनव्ययस्य / अधःशिरसी पदे। कस्कादिषु च (8. 3. ४५-४८)-कुछ अन्य शब्दों में-पपिष्कुण्डिका, धनुष्कपालम्, अयस्कारः, अयस्कामः, यस्कंसः, अयस्कुम्भः, अयस्पात्रम्, अयस्कुशा (अयः साहिता कुशा) .अयस्कर्णी, स्व:कामः, यशःकरोति, परमयशः कारः, अधस्पदम्, अधःपदम्, शिरस्पदम्, शिरःपदम्, भास्करः /
SR No.035322
Book TitleSanskrit Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherTara Book Agency
Publication Year2003
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size98 MB
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