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________________ 24] संस्कृत-प्रवेशिका [७:खाद्य-पादार्थ [246 पिस्ता--अंकोलम पीपर-पिप्पली पुलाव (तहरी)-पुलाकः पूजा-अपूपः | मिठाई-मिष्टान्नम् मीठा-मधुरः मिर्च-मरीचः मिस्त्री-सितोपला मुनक्का-मधुरिका | मुरम्बा-मिष्टपाक मुसम्मी-मातुलुंगः 1 : णिजन्त धातुयें] परिशिष्ट : 3 : प्रत्ययान्त धातुयें सुपारी-पूगः, पूगीफलम् हर्र-हरीतकी सेम-सिम्बा, शिम्बिः / हलुआ-संयावः सेवई (बिया)-सूत्रिका हल्दी-हरिद्रा, काञ्ची सोंठ-शुण्ठी / हींग-हिंगुः, रामठम् पेठा-कोष्माण्डम् पोदीना-अजगन्धः, पुदीनः पोस्ता-पौष्टिकम् प्याज-पलाण्डु . . फल-फलम् फालसा-पुनागफलम् फैनी-फेनिका बताशा-बाताश बथुआ-वास्तुकम् बहेड़ा-बिभीतकः बाजरा--प्रियङ्गुः बादाम-वातादम् बिस्कुट-पिटकः बेर-बदरी, कर्कन्धुः बेल-बिल्वम्, श्रीफलम् बेसन-पणकचूर्णम् * भण्टा-भण्टाकी, वृन्ताकम् .. भांग-विजया भिण्डी-भिण्डका मक्खन-नवनीतम्। मट्ठा (छाछ)-तक्रम् . मसाला-उपस्करः मसूर-मसूरः, मङ्गल्पका महुआ-मधूकः माई-मण्डम् भांस-मांसम्, पिशितम् मालपूआ-अपूपः मूंगफली--मण्डपी मूली--मूलकम्, मूलिका मेवा-शुष्कफलम् मैथी-मेथिका रसगुल्ला-रसगोल: रसोई--रसवती राई-राजिका रायता-दाधेयम् रोटी-रोटिका, करपट्टिका लड्डू-मोदकः, मोदकम् लप्सी-यवागूः लस्सी-दाधिकम् लहसुन-लशुनम् लाजा-लाजाः लौंग-लवङ्गम्, लवङ्गः लौकी--अलाबः शक्कर (चीनी)-शर्करा शराब-मदिरा, सुरा, मद्यम् शरीफा (छीताफल)-सीताफलम् शलगम-श्वेतकन्दः शाक (तरकारी)-शाकः सतपुतिया--सप्तपुत्रिका परिशिष्ट : 3 : प्रत्ययान्त (सनाद्यन्त) धातुयें ( Derivative Roots ) जब किसी विणेष अर्थ, प्रेरणा, इच्छा आदि का बोध कराना अभीष्ट होता है तो 'सन्' आदि 12 प्रत्यय' धातु अथवा प्रातिपदिकों में जोड़े जाते हैं। इनके जुड़ने पर उनकी 'धातु' संज्ञा होती है और तब 'तिङ्' प्रत्यय जुड़ने पर उनके रूप समस्त लकारों में चलते है / ये धातु 'प्रत्ययान्त धातुयें' या 'सनायन्त धातुयें कहलाती है / 'सन्' आदि प्रत्यय धातु (या प्रातिपदिक) और 'ति' प्रत्ययों के बीच में जुड़ते हैं। ये धातुयें 5 प्रकार की होती हैं-(१) णिजन्त ( "णिच्' प्रत्ययान्त = 'प्रेरणार्थक'), (2) सन्नन्त ( 'सन्' प्रत्ययान्त = 'इच्छार्थक'), (3) यडन्त ('यह' प्रत्ययान्त = 'समभिहारार्थक'), (4) बङ्लु गन्त ( यह 'यहस्त' के समान ही है) और (5) नामधातु (क्यचाद्यन्त = "विभिन्नार्थक')। (१)णिजन्त धातु (प्रेरणार्थक = Causative) जब कोई कार्य किसी दूसरे से कराया जाता है तो उस अर्थ बाली धातु में "णिच् प्रत्यय जोड़कर प्रेरणार्थक धातुयें बनाई जाती हैं / जैसे-सः पचति ( वह पकाता है)-सः तेन पाचयति (वह उससे पकवाता है)। णिजन्त-क्रियाओं के बनाने के निम्न नियम हैं-- (क) मूलधातु और प्रत्यय के मध्य 'णिच्' (इ- अय् + अ = अय ) जुड़ेगा। जैसे--गम् + अय + ति = गमयति / (ख) धातु के अंतिम इ, उ, ऋ स्वर को वृद्धि . तथा अयादि सन्धि भी होगी / जैसे- = कारयति / नीनाययति / भू = भावयति / दृष्ण-दर्शयति / (ग) उपधा के अ को वृद्धि और इ, उ, ऋ को गुण होगा / जैसेपळपाठयति / लि = लेखयति / भुज = भोजयति / वृतु वर्तयति / (प) परन्तु गम्, रम्, क्रम, नम्, शम्, दम्, जन्, त्वर, घट् और व्यथ् इन धातुओं के उपधा के 'भ' को वृद्धि नहीं होगी। जैसे-गमयति, रमयति, क्रमयति, नमयति, शमयति, दमयते, . | सरसों-सर्षपः 1. सन्-क्यच-काम्यच-क्यङ्-क्यषोऽथाचारक्विणिज्-यस्तथा / यगायेयङ् णिडाचेति द्वादशामी सनादयः //
SR No.035322
Book TitleSanskrit Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherTara Book Agency
Publication Year2003
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size98 MB
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