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________________ परिशिष्ट ( Appendix) परिशिष्ट : 1: धातुकोष प्रथम गण (भ्वादि.)अट् (प, घुमना ) अटति, अटतु, आटत, अटेत, अटिष्यति / आटयति, अटघते अर्च (प, पूजना) अचंति, अर्चतु, आर्चत, अर्चेत्, अविष्यति / अर्चयति, अच्च ते अर्ज (प, कमाना ) अर्जति, अर्जतु, आर्जन, अर्जत, अजिष्यति / अर्जयति, अय॑ते अई, (प, योग्य० ) अर्हति, अर्हतु, आहंद, अहंद, अहिष्यति / अहंयति, अर्खते ईक्ष (आ, देखना) ईक्षते, ईक्षताम्, ऐक्षत, ईक्षेत, ईक्षिष्यते। ईक्षयति, ईक्ष्यते ईष्य (प, ईर्ष्या०) ईय॑ति, ईमंतु, ऐमंद, ईष्यत्, ईयिष्यति / ईय॑यति, ईष्यते ईह, (आ, चाहना) ईहते, ईहताम्, ऐहत, ईहेत, ईहिष्यते / ईयति, ईहाते ऋ (आ, कमाना) अर्जते, अर्जताम्, आर्जत, अर्जेत, अजिष्यते / अर्जयते, अय॑ते एए (मा, बढ़ना), एधते, एधताम्, ऐधत, एघेत, एधिष्यते / एधयति, एध्यते कम् (आ, चाहना) कामयते, कामयताम् अकामयत, कामयेत, कामयिष्यते / कामयति कम्प (आ, कांपना) कम्पते, कम्पताम्, अकम्पत,कम्पेत, कम्पिष्यते / कम्पयति,कम्प्यते कास् (आ, खांसना) कासते,कासताम्,अकासत,कासेत, कासिष्यते / कासयति,कास्यते कील (प, गाड़ना) कीलति, कीलतु, अकीलत, कीलेत, कीलिष्यति / कीलयति, कील्यते कुर्द, (आ, कूदना) कूदते, कूर्दताम्, अकूर्दत, कूर्पत, कूदिष्यते / कूर्दयति, कूर्यते कूज् (प, चूं) कूजति, कूजतु, अकूजत्, कूजेत्, कृजिष्यति / कूजयति, कूज्यते कूप (आ, समर्थ०) कल्पते, कल्पताम्, अकल्पत, कल्पेत, कल्पिष्यते / कल्पयति, कल्प्यते कृष् (प, जोतना) कर्षति, कर्षतु, अकर्षत, कर्षेत्, कय॑ति / कर्षयति, कृष्यते 111111111 / 1 : भ्वादि गण ] . परिशिष्ट :1: धातुकोष' [227 क्रन्द् (प, रोना ) क्रन्दति, क्रन्दतु, अकन्दत्, क्रन्देत्, क्रन्दिष्यति / कन्ययति, कन्यते कम् (प, चलना) कामति, कामतु, अक्रामत्, कामेत् , मिष्यति / कमयति, कम्यते कीड़ (प, खेलना) क्रीडति, क्रीडतु, अक्रोडत, कीडेत, कीडिष्यति, / क्रीडयति, कीडपते क्षम् (भा, क्षमा०) क्षमते, क्षमताम्, अक्षमत, क्षमेत, क्षमिष्यते / क्षमयति, क्षम्यते क्षि (प, नष्ट०) क्षयति, क्षयतु, अक्षयत्, क्षयेत्, क्षेष्यति / क्षाययति, क्षीयते क्षुभ् (आ, क्षुब्ध०) क्षोभते, क्षोभताम्,अक्षोभत,क्षोभेत,क्षोभिष्यते / क्षोभयति, क्षुभ्यते खन् (उ, खोदना) खनति, खनतु, अखनत्, खनेत, खनिष्यति / खानयति, खन्यते खाद् (प, खाना) खादति, खादतु, अखादत, खादेत, खादिष्यति / खादयति, खाद्यते खेल् (प, खेलना) खेलति, खेलतु, अखेलत्, खेलेत्, खेलिष्यति / खेलयति, खेल्यते गद् (प, कहना) नि+गदति, गदतु, अगदत्, गदेव, गदिष्यति / गादयति, गद्यते गम् (प, जाना) गच्छति, गच्छतु, अगच्छत्, गच्छेत्, गमिष्यति / गमयति, गम्यते गर्ज (प, गरजना) गर्जति, गर्जत, अगर्जत,- गर्जेत, गजिष्यति / गर्जयति, गय॑ते गह, (आ, निन्दा०) गर्हते, गर्हताम्, अगहत, गर्हेत, गहिष्यते / गहँ यति, गाते गाह, (आ, घुसना) गाहले, गाहताम्, अगाहत,गाहेत, गाहिष्यते / गाहयति, गाह्यते गुङ्ग्, (प, गं जना) गुआति, गुजतु, अगुञ्जत् ,गुजेत्, गुञ्जिध्यति / गुञ्जयति, गुज्यते गुप् (प,रक्षा०) गोपायति,गोपायतु,अगोपायत्,गोपायेत् गोपिष्यति / गोपयति,गोप्यते गुप् (आ, निन्दा०) जुगुप्सते, जुगुप्सताम् ,अजुगुप्सत, जुगुप्सेत,जुगुप्सिध्यते / जुगुप्सयति गुह, (उ, छिपाना ) गृहति-ते, गृहतु, अगृहत्, गृहेत्, गृहिष्यति / मूहयति, गुह्यते गै (प, माना ) गायति, गायतु, अगायत्, गायेत्, गास्यति / माययति, गीयते अस् (आ, खाना ) असते, ग्रसताम्, अनसत, असेत, असिष्यते / प्रासयति, अस्यते ग्ले (प, दुखी०) ग्लायति, ग्लायतु, अग्लायत्, ग्लायेत्, बलास्यति / ग्लापयति, ग्लायते घट (मा, यत्न) घटते, घटताम्, अघटत, घटेत, घटिष्यते / घटयति, घट्यते घ्रा (प, सूंघना) जिन्नति, जिघ्रतु, अजिघ्रत्, णित्, घ्राष्यति / प्रापयति, प्रायते चम् (प, पीना) आ + चामति,चामतु, अचामत्, चामेत्, चामिष्यति / चामयति, चम्यते चर् (प, चलना ) चरति, चरतु, अचरत्, चरेत, चरिष्यति / चारयति, पर्यते चव् (प, चबाना) चर्वति, चर्वतु, अचव, पर्वत, चविष्यति / चर्वयति, चर्यते चल (प, कम्पन०) चलति, चलतु, अचलत, चलेत, चलिष्यति / चलयति, पल्यते चित्' (प, समझना ) चेतति, चेततु, अचेतत्, चेतेत्, चेतिष्यति / चेतयति, चित्यते चुम्बू (प, चूमना) चुम्बति, चुम्बतु, अम्बत्, चुम्बेद, धुम्बिध्यति / जुम्व्यति, चुम्ब्यते 1. (क) गण के क्रम से तथा अकारादि क्रम से प्रसिद्ध धातुओं के क्रमशः लट्, लोट्, लङ, विधिलिङ्, लुट् और णिच्-प्रत्ययान्त व कर्मवाच्य के प्र० पु० एकवचन के रूप दिए गए हैं / (ख) उभयपदी धातुओं के परस्मैपद में ही अधिक प्रचलित होने के कारण उनके प्रायः परस्मैपद के ही रूप दिए गए हैं। (ग) भनेक अर्थ वाली घातुओं का कोष्ठक में एक ही अर्थ दिया गया है। (घ) 'जो धातुएं एकाधिक गण में हैं उनका प्रसिद्धि को ध्यान में रखकर कहीं-कहीं उल्लेख कर दिया है। (ङ)प, आ, उ ये वर्ण क्रमशः परस्मैपदी, आत्मनेपदी और उभयपदी के बोधक हैं। 2. काश् (भा,चमकना) इसके रूपों में 'स' के स्थान पर 'श' होगा / जैसे-काशते / 1. यह धातु चतुर्थ गण में परस्मैपदी होती है। जैसे—क्षाम्यति, भाग्मत् / 2. यह धातु चुरादिगण में स्भयपदी होती है। जैसे-गहंयति-ते / 3. यह पातु चुरादिगण में (सोचना अर्थ में ) मा०होती है। श्री-भागते /
SR No.035322
Book TitleSanskrit Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherTara Book Agency
Publication Year2003
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size98 MB
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