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________________ 188] संस्कृत प्रवेशिका [पाठ : 23-24 8. दशरथ ने अपने पुत्र राम को वन भेजाम्दवारथः स्वपुत्र रामं धनमगमयत् / 6. मित्र को घर में प्रवेश कराओ = मित्रं गृहं प्रवेशय / 10. गुरु छात्रों को वेद पढ़ायें = गुरुः छात्रान् वेदमध्यापयतु / 11. तुम इसे क्यों नहीं पड़ाते हो - त्वमिमं किमर्थ म पाठयसि ? नियम-६०. प्रेरणात्मक वाक्यों में णिजन्त-क्रिया (देखिए, परिशिष्ट 3 तथा पृ० 70) का प्रयोग होता है। _णिजन्त क्रिया का प्रयोग करते समय कर्तृवाच्य में-(क) सामान्य रूप से प्रयोज्य-कर्ता (अणिजन्त क्रिया का कर्ता) में तृतीया, प्रयोजक-कर्ता (णिजन्त क्रिया का कर्ता) में प्रथमा, कर्म में द्वितीया और क्रिया प्रयोजक-कर्ता के अनुसार होगी। (ब) अकर्मक, गत्यर्वक, शानार्थक, भक्षणार्थक, शब्दकर्मक, परस्मैपदी 'दृश्' आदि कुछ धातुओं के होने पर प्रयोज्य-कर्त्ता में द्वितीया होगी। (ग)'' और 'कृ' धातुओं (आत्मनेपदी 'दृश्' भी) के होने पर प्रयोज्य- कर्ता में द्वितीया अथवा तृतीया दोनों विकल्प से हो सकती हैं। (प) यदि कोई प्रयोजक-कर्ता किसी दूसरे प्रयोजक-कत्ता से प्रेरित होकर (प्रयोज्य कर्ता से) कार्य कराता है तो द्वितीय प्रयोजकमा में द्वितीया न होकर (गत्यर्थक धातुओं के होने पर भी) तृतीया ही होगी। अभ्यास २२-मारीच रावण से सीता का अपहरण करवाता है। भगवान् सबको सुख देते हैं। मैंने अपने मित्र का विश्वविद्यालय में प्रवेश करवाया / शेर बालक को हराता है। तपस्वी तृणों से भूगो के बच्चों को तृप्त करते हैं। मन्त्री राजा से उसे धन दिलाता है। सुमन्त्र के द्वारा राम बन ले जाये जाते है। कौरव पाण्डवों को वन में भेजते हैं। माता बालक को चन्द्रमा दिखाती है। गुरु छात्र को शास्त्र पढ़ाता है। सूर्य कमलों को विकसित करता है। विश्वामित्र ने जनक की पुत्री के साथ राम का विवाह करवाया / पण्डित ग्रामवासियों को कथा सुनाता है / साघु सादगी से जीवन का निर्वाह करते हैं। क्या अध्यापक ने छात्र से कार्य करवाया? __ पाठ 23 : निमित्तार्थक वाक्य उदाहरण-वाक्य [ 'तुमुन् प्रत्यय का प्रयोग]१. क्या वे शत्रु को मारने के लिए शिव की उपासना करते हैं कि ते शत्रु ___हन्तुं (हननाय) शिवमुपासन्ते / 2. गीता भोजन के लिए प्रयत्न करती है = गीता भोक्तुं ( भोजनाय ) यतते / 3. तुम यह कार्य नहीं कर सकते हो = त्वमिदं कार्य कर्तुं न शक्नोषि / निमित्तार्थक; हेतुहेतु.] 2 : अनुवाद [16 4. मैं विद्याभ्यास के लिए काशी जाऊँगा परन्तु भाग्य में लिखे हुए को कोन मिटा सकता है = अहं विद्याभ्यास कतुं (करणाय) काशी गमिष्यामि परन्तु ललाटे लिखितं प्रोज्झितुं का समर्थः? 5. वन जाने की इच्छा है = वनं गन्तुम् (गमनाय ) इच्छास्ति / 6. यह जाने का समय है = गन्तुं ( गमनाय ) वेला इयमस्ति / 7. वह बोलने का इच्छुक है = सः वक्तुकामः अस्ति / 8. मैं जीतने के लिए पर्याप्त है = अहं जेतुं पर्याप्तः ( अलम् ) अस्मि / नियम-६१. निम्न स्थलों में धातुओं से 'तुमुन्' (तुम् ) प्रत्यय जुड़ता है-(क) निमित्तार्थक 'को' या 'के लिए' अर्थ प्रकट होने पर / (ख)'जाने वाला है या 'जाने को है' इस अर्थ के होने पर / (ग) काल-वाचक (समय, वेला आदि) शब्दों के होने पर / (घ) पर्याप्त, समर्थ, अलम् आदि शब्दों के होने पर। नोट-'तुमन्' प्रत्ययान्त अव्यय और मुख्य क्रिया का कर्ता एक ही होता है। अभ्यास-२३ पुत्र की रक्षा करने के लिए वह युद्ध-स्थल में गया / तुम यह कार्य नहीं कर सकते हो / वे जल में स्नान करने नदी के किनारे गये। मैं कालेज जाने की तैयार है। छात्र पुस्तकें खरीदने के लिए बाजार जाते हैं। यह समय पढ़ने का है, खेलने का नहीं। शायद आप और कुछ कहना चाहते हैं / पिता जी कुम्भ-स्नान के लिए प्रयाग गये / तुम गाने के लिए कहाँ जाओगे ? वैज्ञानिक शास्त्र समस्त संसार को नष्ट करने में समर्थ हैं। क्या कल तुम्हारा नौकर काम करने के लिए नहीं आया? मैं जानना चाहता हूँ कि यह पत्र किसने लिखा है ? क्या तुम व्याकरण पढ़ना चाहते हो? पसीने से नहाई हुई भी वह नहाने के लिए तालाब में उत्तरी। पाठ 24 : हेतुहेतुमद्भावात्मक ( Conditional ) वाक्य सदाहरण-वाक्य [ 'यदि', 'येत्' और 'हि' का प्रयोग]१. यदि तुम मेरी बात सुनोगे तो जीवन में सुखी रहोगे = यदि मम वचनं शृणोसि त्वं तहि जीवने सुखी भविष्यसि / 2. यदि वह यज्ञ करेगा तो अनयों का विनाश अवश्य होगा = यदि यज्ञं करोति सः तहि अनर्यानां विनाशो भविष्यति / 3. यदि मैं वहाँ जाऊँगा तो वहाँ उस कन्या को देखेंगा = यदि तत्र गच्छाम्यहं तहि तत्र तो कन्यको द्रक्ष्यामि / 4. यदि वह तुम्हारा मित्र है तो तुम्हारा काम अवश्य करेगा यदि सः तव मित्रमस्ति तहि तव कार्यम् अवश्यं करिष्मति /
SR No.035322
Book TitleSanskrit Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherTara Book Agency
Publication Year2003
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size98 MB
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