________________ की प्राप्ति हो सकती है और गत जन्म के पाप कर्म का उदय हो तो इस जन्म में पुण्य करने पर भी दुःख का अनुभव हो सकता है | जैसे पहले दिन खाने में गलती की हो तो दूसरे दिन भी उसकी पीडा हो सकती है | बस, इसी प्रकार गत भव के पुण्य-पाप की सजा इस जीवन में हो सकती है। प्रश्न : क्या ईश्वर सुख दुःख देनेवाले नहीं हैं ? उत्तर : यदि संसारी जीवों के सुख-दुःख के कर्ता के रूप में ईश्वर को मान लिया जाय तो प्रश्न यह खड़ा होगा कि ईश्वर तो दयालु हैं, वह संसार में किसी जीव को दुःखी क्यों बनाएगा ? ईश्वर ही सुख-दुःख देता हो तो वह सबको सुखी क्यों नहीं करता ! यदि ईश्वर भी जीवों के अपने अपने कर्म के अनुसार सुख-दुःख देता हो तो आखिर तो यही सिद्ध हुआ न कि जीव को अपने ही कर्म के अनुसार सुख-दुःख मिलते हैं, तो फिर सुख-दुःख देने में ईश्वर को बीच में लाने की जरूरत ही क्या ? यदि जीवात्मा को अपने-अपने कर्म के अनुसार सुख-दुःख देता हो तो वह सर्व शक्तिमान् ईश्वर जीवों को दुष्कर्म करने से ही क्यों नहीं रोकता है ? पहले जीवों को दुष्कर्म करने दे और फिर उन्हें सजा करे | इससे तो बेहतर है कि उन्हें दुष्कर्म करने से ही रोक दे / किए हुए कर्मों के अनुसार होती है / प्रश्न : आत्मा पर लगे कर्म दिखते नहीं हैं फिर उन्हें कैसे माना जाय ? उत्तर : अपने चर्म चक्षुओं द्वारा आत्मा पर लगे हुए कर्मों को देख नहीं पाते हैं, परंतु केवलज्ञानी परमात्मा तो आत्मा पर लगे कर्म परमाणुओं को प्रत्यक्ष देख पाते हैं / अतः हमारे लिए चर्म चक्षु से कर्म को देखना संभव नहीं है, परंतु वीतराग परमात्मा को तो प्रत्यक्ष है / कर्मग्रंथ (भाग-1) 34