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________________ 4 ह कर्म की सिद्धि इस जगत् में रहे हुए जीवों में जो भिन्नताएँ दिखाई देती हैं, उनका मुख्य कारण कर्म ही है / एक आदमी धनवान् दिखाई देता है और दूसरा गरीब / एक सशक्त स्वस्थ दिखाई देता है और दूसरा रोगी / एक राजा है तो दूसरा भिखारी / एक बहुत बड़ा बुद्धिशाली है तो दूसरा महामूर्ख | एक 100 वर्ष तक जीता हैं तो दूसरा 5 वर्ष में ही मर जाता है | एक को सर्वत्र मान-सम्मान और यश मिलता है तो दूसरे को सर्वत्र अपमान और तिरस्कार | इस प्रकार जगत् में जो विभिन्नताएँ विचित्रताएँ देखने को मिलती हैं, उन सबका मुख्य कारण कर्म ही है / __जगत् में 'कार्य-कारण भाव' का नियम है अर्थात् जगत् में कोई भी कार्य पैदा होता है, उसका कोई-न-कोई कारण अवश्य होता है / बिना कारण कोई कार्य पैदा नहीं होता है / एक ही पिता के दो पुत्र-एक धनवान् और दूसरा गरीब होता है / इसका कारण उनके पूर्वभव के कर्म ही हैं / एक ही माँ से पैदा हुए...दोनों पुत्र समान शिक्षण पाए होने पर भी जो भेद पड़ता है, उसका कारण कर्म ही है / पुण्य कर्म के उदय से जीव को सुख की प्राप्ति होती है | पाप कर्म के उदय से जीव को दुःख की प्राप्ति होती है / प्रश्न : वर्तमान में एक जीव पाप-कर्म, चोरी आदि करता दिखाई देता है, फिर भी वह सुखी दिखाई देता है और एक आदमी खूब धर्म करता दिखाई देता है, फिर भी वह दुःखी होता है, इसका क्या कारण है ? उत्तर : आत्मा अपने जीवन में जिस सुख-दुःख का अनुभव करती है, वह मात्र इसी जन्म के पुण्य-पाप कर्म का फल नहीं है / गत जन्म के पुण्य कर्म का उदय हो तो उसके फलस्वरूप इस जीवन में पाप करने पर भी सुख कर्मग्रंथ (भाग-1)
SR No.035320
Book TitleKarmgranth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2019
Total Pages224
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size39 MB
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