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________________ आखिर यह बात रोहक तक पहुँची, रोहक ने कहा, 'आपकी अनुमति हो तो मैं इसका रास्ता निकाल देता हूँ / ' ग्रामवासियों ने अपनी सहमति प्रदान की / 1) राजा की पहली आज्ञा थी : 'गाँव के बाहर जो बड़ी शिला है, उसका मंडप बनाओ / ' रोहक ने कहा, 'शिला के नीचे गहरा खड्डा खोद कर उसमें स्तंभ, दीवार, चित्रकर्म आदि कर योग्य मंडप बना दो / ' ग्रामवासियों ने वैसा ही किया / 2) राजा की दूसरी आज्ञा थी- 'इस भेड को ले जाओ, इसे खूब हराभरा घास खिलाओ | 15 दिन बाद वापस भेजो, परंतु इसका वजन बिल्कुल बढना नहीं चाहिए।' रोहक ने कहा, 'इस भेड़ को खूब खिलाओ और इसे ऐसी जगह रखो, जहाँ पास में ही पिंजरे में बाघ हो / ' लोगों ने वैसा ही किया / हराभरा घास खाने से भेड का वजन बढ़ता था. किंत पिंजरे में रहे बाघ को देखते ही भय के मारे उसे पसीना छूट जाता था, खाया हुआ भी उसका पानी हो जाता था / 15 दिन के बाद भी उस भेड़ का वजन उतना ही था, जितना 15 दिन पहले था / 3) राजा की तीसरी आज्ञा थी - 'इस मुर्गे को ले जाओ और इसे अकेले ही लडने दो / रोहक ने कहा, 'इस मुर्गे के सामने एक बहुत बड़ा दर्पण रख दो / दर्पण में अपना प्रतिबिंब देखकर वह मुर्गा लड़ने लगा / 4) राजा की चौथी आज्ञा थी- 'तुम्हारे गाँव के बाहर जो रेती है उसमें से एक रस्सी (डोरी) बनाकर भेजो / ' रोहक ने कहा, "आपकी आज्ञा स्वीकार्य है किंतु रस्सी कितनी मोटी कर्मग्रंथ (भाग-1) = 103
SR No.035320
Book TitleKarmgranth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2019
Total Pages224
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size39 MB
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