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________________ ५७ ei सहरण: शक की विचारणा अर्थ - तत्पश्चात् उस शक्र देवेन्द्र देवराज को इस प्रकार का अध्यवसाय, चितन रूप तथा अभिलाषा रूप में, मनमें जागृत हुआ, संकल्प उत्पन्न हुआ कि ऐसा न कभी पूर्व हुआ है, न वर्तमान में होता ही है और न भविष्य में होगा ही'अरिहन्त [ तीर्थंकर ] चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव अन्त्यकुल में, प्रान्तकुल में अधमकुल में, तुच्छकुल में, दरिद्रकुल में, कृपणकुल में, भिक्षुककुल में, अथवा ब्राह्मण कुल में जन्मे हों, जन्मते हों अथवा जन्मेंगे । इस प्रकार निश्चय ही अरिहन्त, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव ये उग्रकुल में, भोगकुल में, राजन्यकुल में, इक्ष्वाकुकुल में, क्षत्रियकुल में, हरिवंशकुल में तथाप्रकार के अन्य भी विशुद्ध जाति कुल वाले वंशों में जन्मे थे, जन्मते हैं और जन्मेंगे | विवेचन-- उग्रकुल, भोगकुल, राजन्यकुल और क्षत्रियकुल इन कुलों की स्थापना भगवान् ऋषभदेव ने की थी। राज्य की सुव्यवस्था के लिए आरक्षक दल बनाया, जिसके अधिकारी दण्ड आदि धारण करने से 'उग्र' कहलाये। मंत्रीमण्डल बनाया जिसके अधिकारी गुरु स्थानीय थे वे 'भोग' नाम से प्रसिद्ध हुए। राजा के समीपस्थ जन, जो समान वय वाले मित्र रूप में परामर्श प्रदाता थे वे 'राजभ्य' के नाम से विख्यात हुए। शेष अन्य राजकुल में उत्पन्न क्षत्रिय नाम से पहचाने गये । ११० भगवान् ऋषभदेव एक वर्ष से कुछ कम के थे तब नाभिराजा की गोद में बैठे हुए क्रीड़ा कर रहे थे । उस समय शक्रेन्द्र हाथ में इक्षु लेकर आए, भगवान् ने हाथ आगे बढ़ाया । "" तब इन्द्र ने सोचा भगवान् इक्षु की इच्छा कर रहे हैं, अतः इनका वंश इक्ष्वाकु हो, इस प्रकार ने की ।११३ इक्ष्वाकुवंश की स्थापना इन्द्र हरिवर्ष क्षेत्र से लाये गये युगल से हरिवंश उत्पन्न हुआ । ११३ 993 तथाप्रकार के अन्य विशुद्ध जाति कुल वंश से तात्पर्य है - महान् शक्ति व तेजः सम्पन्न योद्धा जैसे मल्लवी तथा लिच्छवी राजवंश के राजागण, युवराज, मधिक राजागण जिनके तेजस्वी व्यक्तित्व पर प्रसन्न होकर पुरस्कार प्रदान किया जाय वैसे वीर, सन्निवेश नायक, कुटुम्ब के नायक आदि ।
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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