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________________ १६ मूल • वस आश्चर्य ---- कल्प सूत्र अस्थिपुण एसे वि भावे लोगच्छेरयभूए अनंताहि ओसप्पिणीउस्सप्पिणीहि वीइक्कंताहिं समुप्पज्जति, ( प्र ० १०० ) नामगोत्तस्सवा कम्मस्स अक्खीणस्स अवेइयस्स अणिज्जिण्णस्स उदपणं जन्न अरहंता वा चक्क्वट्टी वा बलदेवा वा वासुदेवा वा अंतकुलेसु वा पंतकुलेसु वा तुच्छकुलेसु वा, दरिद्दकुलेसु वा भिक्खागकुलेसु वा किविणकुलेसु वा माहणकुलेसु वा, आयाइंसु वा आयइति वा आया इस्संति वा कुच्छिसि गव्भत्ताए वक्कमिंसु वा वक्कमति वा वक्कमिस्संति वा, नो चेव णं जोणीजम्मणनिक्खhi निक्ख मंस वा निक्खमंति वा निक्खमिस्संति वा ॥ १८ ॥ " अर्थ - किन्तु लोक में इस प्रकार का आश्चर्यभूत कार्य भी अनन्त अवसर्पिणी उत्सर्पिणी व्यतीत होने के पश्चात् होता है, जब कि अरिहन्त भगवान चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, उस प्रकार के नाम गोत्र कर्म के क्षीण नही होने से ( स्थिति क्षय के अभाव मे ) रस - विपाक द्वारा कर्म के नही भोगे जाने से, कर्म की निर्जरा नही होने से एवं उस कर्म के उदय से वे अन्त्यकुल में, प्रान्तकुल में, तुच्छकुल में, दरिद्र कुल में, कृपण कुल में, भिक्षुक कुल में, ब्राह्मण कुल में अतीत काल में आये है, वर्तमान में आते हैं और भविष्य में आयेंगे, कुक्षि मे गर्भ रूप में अतीत काल में उत्पन्न हुए है, वर्तमान में होते है और भविष्य में भी उत्पन्न होगे, परन्तु अतीत काल में भी उन्होंने वहाँ पर जन्म नही लिया है, वर्तमान में भी नहीं लेते है और न भविष्य में ही जन्म लेगे । विवेचन - आगम के समर्थ टीकाकार आचार्य अभयदेव ने कहा है " जो बात अभूतपूर्व व अलौकिक हो, जिसे देखकर मन में विस्मय उत्पन्न हो वह आश्चर्य है ।०४ आश्चर्य और असभव शब्दोंके अर्थ में बहुत अन्तर है । असभव का अर्थ है जो कभी हो न सकता हो, पर आश्चर्य असंभव नहीं है, केवल विरल घटना है । यहाँ पर विश्व के अन्य आश्चर्यों का वर्णन न कर केवल जैनागमों में
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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