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________________ कल्पसूत्र विवेचन प्रस्तुत सूत्र के तीन नाम उपलब्ध होते है । कल्पसूत्र, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति आदि आगमों में शकेन्द्र द्वारा वन्दन प्रयुक्त होने से यह 'शक्रस्तव' के नाम से प्रसिद्ध है । अनुयोगद्वार सूत्र के आदानपद नाम के उल्लेखानुसार इस स्तुति का 'नमुत्थुणं' नाम प्रारंभिक पद के ऊपर से चल पड़ा है । "योगशास्त्र " स्वोपज्ञवृत्ति, प्रतिक्रमणवृत्ति आदि ग्रन्थों में इसका नाम प्रणिपात सूत्र ( नमस्कार सूत्र ) दिया है । ५६ यह स्तुति अत्यन्त प्रभावशाली है । इसके एक-एक अक्षर में भक्तिरस कूट-कूटकर भरा है । इस स्तुति में तीर्थंकरों के आध्यात्मिक गुणों का उत्कीर्तन सर्वत्र मुखरित हुआ है । आध्यात्मिक उत्कर्ष के लिए, साधक को इसे प्रतिदिन एकसौ आठ बार श्रद्धा के साथ स्मरण करना चाहिए। जो साधक भक्तिभावना से विभोर होकर इसका प्रतिदिन नियमित जाप करता है उसके चरणों में अखिल संसार का भौतिक और आध्यात्मिक वैभव अपने आप आकर उपस्थित हो जाता है । उसके अन्तर्मानस में किसी प्रकार की निराशा नहीं रहती, वह सदा-सर्वदा सुख व आनन्द को प्राप्त करता है । ------ मूल तए णं तस्स सक्क्स्स देविंदस्स देवरन्नो अयमेयारूवे अज्झथिए चिंतिए पत्थिए मणोगए संकष्पे समुप्पज्जित्थान एवं भूयं, न एयं भव्वं, न एयं भविस्सं, जं नं अरहंता वा चक्कवट्टी वा बलदेवा वा वासुदेवा वा अंतकुलेसु वा पंतकुलेसु वा तुच्छकुलेसु वा दरिद्दकुलेसु वा किविणकुलेसु वा भिक्खायकुलेसु वा माहणकुलेसु वा आयाइंसु वा आयाइंति वा आयाइति वा एवं खलु अरहंता वा चक्कवट्टी वा बलदेवा वा वासुदेवा वा उग्गकुलेसु वा भोगकुलेसु वा राइष्णकुलेसुवा इक्खागकुलेसु वा खत्तियकुलेसु वा हरिवंसकुलेसु वा अन्नतरेसु वा तहप्पगारेसु विसुद्ध जातिकुलवंसेसु आयाइंसुवा आयाइंति वा आयाइस्संतिव ।। १७ ।
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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