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कल्प सूच
समुस्ससियरोमकूवे सुमिणोग्गहं करेइ, करित्ता ईहं अणुपविसइ, ईहं अणुपविसित्ता अप्पणो साभाविएणं मइपुव्वएणं बुद्धि विन्नाणेणं तेसिं सुमिणाणं अत्थोग्गहं करेइ, २ करेत्ता देवानंदां माहणि एवं वयासी ॥७॥
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अर्थ - उसके पश्चात् वह ऋषभदत्त ब्राह्मण देवानन्दा ब्राह्मणी से इस बात को श्रवण कर एवं धारण कर हर्षित व तुष्ट हुआ, अत्यन्त आह्लाद को प्राप्त हुआ । जैसे मेघ की धारा से सिंचित होने पर कदम्ब - पुष्प खिल उठता है वैसे ही उसको रोमाञ्च हो गया । वह स्वप्नों को अवग्रहण कर उनके फल के अनुसंधान में विचार करने लगा, अपनी स्वाभाविक मनन युक्त बुद्धि विज्ञान से उन स्वप्नों का अर्थ अवधारण कर देवानन्दा ब्राह्मणी से इस प्रकार बोला । मूल :--
ओराला गं तुमे देवाणुप्पिए ! सुमिणा दिट्ठा, कल्लाणा ० सिवा धन्ना मंगल्ला सस्सिरीया आरोग्गतुट्टिदीहाउकल्लाणमंगल्लकारगाणं तुमे देवाणुपिए ! सुमिणा दिट्ठा । तं जहाअत्थलाभ देवाणुप्पिए ! भोग लाभो देवाणुप्पिए ! पुत्त लाभो देवाप्पिए! सोक्खलाभो देवाणुप्पिए! एवं खलु तुमं देवाणुप्पिए ! नवहं मासाणं बहुपडिपुन्नाणं अट्टमाणं राइंदियाणं विड़क्कंताणं सुकुमालपाणिपायं अहीणपडिपुन्नपंचिंदियसरीरं लक्खणवंजण गुणोववेयं माणुम्माणपमाणपडिपुण्णं सुजायसव्वंगसुदरंग ससिसोमाकार कंतं पियदसणं सुरूवं देवकुमारोवमं दारयं पयाहिसि ॥ ८ ॥
अर्थ - हे देवानुप्रिये ! निश्चय ही तुमने उदार (विशिष्ट) स्वप्न देखे | कल्याणकारी, शिवरूप, धन्य और मंगलरूप स्वप्न देखे हैं। तुमने आरोग्यवर्धक