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________________ गर्भ संहरण दीर्घायुप्रदाता कल्याण करने वाले, मंगल करने वाले, स्वप्न देखे हैं । हे देवाप्रिये ! इन स्वप्नों का विशेष फल तुम्हें अर्थलाभ, भोगलाभ, पुत्रलाभ और सुखलाभ रूप होगा । हे देवानुप्रिये ! निश्चय ही नवमास और साढ़े सात रात्रि व्यतीत होने पर तुम पुत्र रत्न को जन्म दोगी। वह पुत्र हाथ पैरों से बड़ा ही सुकुमाल, हीनता रहित पांचों इन्द्रियों से परिपूर्ण शरीर वाला होगा, शुभलक्षणों, शुभ व्यजनो और श्रेष्ठ गुणो वाला होगा, मान, उन्मान एवं प्रमाण से युक्त, सर्वाङ्ग सुन्दर, चन्द्र की तरह सौम्य, कान्त, प्रिय, देवकुमार सदृश होगा । ४५ विवेचन - भारतीय सामुद्रिक शास्त्र में मानव शरीर के लक्षण, व्यंजन और हस्तरेखाओं के सम्बन्ध मे बहुत विस्तार के साथ विवेचन किया गया है । लक्षणमानव के व्यक्तित्व और कृतित्व के प्रतीक हैं । तीर्थकर व चक्रवर्ती सम्राट् के शरीर पर एक हजार आठ लक्षण होते हैं । वासुदेव के एक सौ आठ तथा सामान्य प्रतिभा सम्पन्न व्यक्ति के बत्तीस लक्षण होते हैं । बत्तीस लक्षण की गणना के अनेक प्रकार हैं। एक गणना इस प्रकार हैं(१) छत्र, (२) कमल, (३) रथ, (४) वज्र, (५) कूर्म, (६) अंकुश, (७) वापिका, ८) धनुष्य, ( ९ ) स्वस्तिक, (१०) तोरण ( बन्दरवार ), (११) सरोवर, (१२) सिंह, (१३) रुद्र, (१४) शंख, (१५) चक्र, (१६) हस्ती, ( १७ ) समुद्र, (१८) कलश, (१६) महल, (२०) मत्स्य, (२१) यव, (२२) यज्ञस्तम्भ, (२३) स्तूप, (२४) कमण्डलु, (२५), पर्वत, (२६) चामर, (२७) दर्पण, ( २८ ) वृषभ, (२९) पताका, (३०) लक्ष्मी, (३१) माला, (३२) मयूर । १४ भाग्यशाली मानव के ये लक्षण हाथ या पैर आदि में होते है। द्वितीय गणना इस प्रकार है (१) नाखून, (२) हाथ, (३) पैर ( ४ ) जिह्वा, (५) ओष्ठ, (६) तालु, (७) नेत्र के कोण ये सात रक्त हों, (८) कक्षा, (९) हृदय ( वक्ष:स्थल ) (१०) ग्रीवा, (११) नासिका, (१२) नाखून, (१३) मुख, ये छह अग उन्नत हों, (१४) दाँत, (१५) त्वचा, (१६) केश, (१८) नाखून ये पांच बारीक - छोटे हों, (१९) नेत्र, ( २० ) हृदय, (२१) नासिका, (२२) हनु (ढोडी), (२३) भुजाएँ पांच अंग लम्बे हों, (२४) ललाट, (१७) उंगलियों के पर्व,
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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