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________________ कल्प सूत्र विवेचन-निद्रा दर्शनावरणीय कर्म का उदय है। उसके पांच भेद हैं(१) निद्रा, (२) निद्रा-निद्रा, (३) प्रचला, (४) प्रचला-प्रचला (५) और स्त्यानद्धि-निद्रा। इन पाँच निद्रा मे से तृतीय प्रचला निद्रा-अवस्था में देवानन्दा चतुर्दश स्वप्न देखती है ।' ०२ यहाँ उदार का अर्थ प्रधान, कल्याण का अर्थ आरोग्यकर, शिव का अर्थ उपद्रवों को शमन करने वाला, धन्य का अर्थ धन (अच्छाई को धारण करने वाला, मंगल का अर्थ पवित्र, श्रीयुक्त का अर्थ शोभा से मनोहर है।'.3 मूल : तंजहा गय वसह सीह अभिसेय, दाम ससि दिणयरं झयं कुभं । पउमसर सागर विमाण, भवण रयणुच्चय सिहिं च ॥५॥ अर्थ--उन चौदह महास्वप्नों के नाम इस प्रकार है-(१) हस्ती, (२) वृषभ, (३) सिंह, (४) लक्ष्मी-देवी का अभिषेक, (५) पुष्प माला, (६) चन्द्र (७) सूर्य, (८) ध्वजा, (९) कुम्भ, (१०) पद्म सरोवर, (११) सागर, (१२) देव-विमान अथवा भवन (१३) रत्न राशि (१४) निर्धू म अग्नि । मूल : तए णं सा देवाणंदा माहणी इमेतारूवे ओराले कल्लाणे सिवे धन्न मंगल्ले सस्सिरीए चोहस महासुमिणे पासित्ता गं पडिबुद्धा समाणी हहतुद्दचित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणसिया हरिसवसविसप्पमाणहियया धाराहयकलंबुयं पिव समुस्ससियरोमकूवा सुमिणोग्गहं करेइ, सुमिणोग्गहं करित्ता सयणिज्जाओ अब्भुतुइ, सयणिज्जाओ अब्भुत्ता अतुरियमचवलमसंभंताए राइहंससरिसीए गईए जेणेव उसभदत्त माहणे तेणेव उवागच्छइ,
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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