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________________ उपक्रम : बस कल्प १५ पुत्र ने सोचा - 'पिता को ऐसा छट्ठी का दूध पिलाऊँ जिससे पिता भी याद रखे । एक दिन सभी घर वाले बाहर गये हुए थे । वह अकेला ही घर में था। घर के सभी द्वार बन्द कर वह एक कमरे में बैठ गया । पिता लौटे, आवाज दी, पर वह न बोला और न द्वार ही खोला । सेठ ने सोचा, सम्भव है कुछ अनहोनी घटना घटित हो गई हो, चिन्तातुर दीवाल को लांघ कर अन्दर पहुँचा । लड़का अन्दर बैठा हुआ मन ही मन हंस रहा था । सेठ ने कहा 'अरे मूर्ख । इतनो आवाजे दी, बोला क्यों नहीं ? उसने खिलखिलाकर हसते हुए कहा- 'आपने ही तो कहा था कि बड़ों के सामने बोलना नही ।' आचार्यों ने इन उदाहरणों से प्रथम, अतिम एव मध्यम तीर्थङ्करों के युग का मनोविश्लेषण उपस्थित किया है कि तद्युगीन मनुष्यों की वृत्तियाँ एवं मन स्थिति किस प्रकार, ऋजुजड, वक्रजड एव ऋजु प्राज्ञ होती थी । • पर्युषण और कल्पसूत्र का महत्व भारतवर्ष पर्व प्रधान देश है । पर्वो का जितना सूक्ष्मविवेचन और विशद विश्लेषण भारतीय साहित्य में दृष्टिगोचर होता है उतना अन्य साहित्य में नही । यहाँ सात वार हैं तो नौ त्योहार । पर्व दो प्रकार के होते हैं, लौकिक तथा लोकोत्तर । लौकिक पर्व, आनन्द, भोग एवं खेल कूद से मनाये जाते हैं, किंतु लोकोत्तर पर्व - त्याग, तपस्या एव साधना के द्वारा । लोकोत्तर पर्वों मे भी पर्युषणपर्व का अपना विशिष्ट स्थान है । अपनी कुछ मौलिक विशेषताओ के कारण ही यह 'महापर्व' कहलाता है । जैसे - क्षीरो मे गोक्षीर, जलो मे गंगा नीर, पट सूत्रों में हीर, वस्त्रो मे चीर, अलकारो मे चूड़ामणि, ज्योतिष्को मे निशामणि, तुरङ्गी में पचवल्लभ किशोर, नृत्य मे मयूर नृत्य, गजो मे ऐरावत, दैत्यो मे वनो में नन्दन वन, काष्ठों से वन्दन, तेजस्वियो मे आदित्य, राजाओं में विक्रमादित्य, न्यायकर्त्ताओं में श्रीराम, रूप मे काम, सतियों मे राजीमती, शास्त्रों मे भगवती, वाद्यो मे भभा, स्त्रियों में रम्भा, सुगन्धों मे कस्तूरी, वस्तुओं मे तेजमतुरी, पुण्यधारियो मे नल, पुष्पों में कमल, वैसे ही पर्वों में पर्युषण पर्व है । पर्युषण पर्व के पुण्य-पलो मे साधक को बहिरात्मभाव से अधिकाधिक हटकर अन्तरात्मा मे रमण करना चाहिए। त्याग, वैराग्य और प्रत्याख्यान से जीवन को चमकाना चाहिए। रावण, पर्युषण मे जीवनोत्थान की मंगलमय प्रेरणा प्राप्त करने के लिए ही कल्पसूत्र के वाचन व श्रवण की परम्परा है । कल्पसूत्र दशाश्रुत स्कध का आठवाँ अध्ययन है । इसके तीन विभाग है । प्रथम विभाग में चौबीस तीर्थंकरों का पवित्र चरित्र है । द्वितीय विभाग में स्थविरावली है और तृतीय विभाग में समाचारी है । १ कल्पसूत्र महत्त्व का प्रतिपादन करते हुए आचार्यों ने कहा है - कल्पसूत्र आचार और तप के महत्त्व का प्रतिपादन करने वाला महत्त्वपूर्ण सूत्र है । यह कल्पवृक्ष के
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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