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________________ समाधारी : केश लुचन ३५३ विवेचन- हाथ से नोचकर बालों को निकालना केशलोच है। सभी तीर्थकर प्रव्रज्या ग्रहण करते समय अपने हाथ से पंचमुष्टि लोच करते हैं,३२ एतदर्थ यह परम्परा भगवान् ऋषभदेव से चली आ रही है । लोच उग्र तप है, कष्ट-सहिष्णुता की बड़ी-भारी कसौटी है। आचार्य हरिभद्र ने दशवकालिक वृत्ति में लोच को काय-क्लेश माना है, वह संसार विरक्ति का मुख्य कारण है। काय-क्लेश के वीरासन, उकडूआसन, और लोच मुख्य भेद हैं। तथा लोच करने से (१) निर्लेपता, (२) पश्चात् कर्म वर्जन, (३) पुरः कर्म वर्जन, (४) कष्ट सहिष्णुता ये चार गुण प्राप्त होते हैं। हां तो, प्रस्तुत सूत्र में यह बताया गया है कि संवत्सरी के पूर्व लोच अवश्य करना चाहिए । लोच करने के कुछ हेतु चूणि और व्याख्या साहित्य; में इस प्रकार बताये गये हैं:-(१) केश होने से अप्काय के जीवों की हिंसा होती है। (२) भींगने से जुएं उत्पन्न होती हैं। (३) खुजलाता हुआ श्रमण उसका हनन कर देता है। (४) खुजलाने से सिर में नख-क्षत हो जाते हैं (५) यदि कोई मुनि क्षुर (उस्तरे) या कैंची से बालों को काटता है तो उसे आज्ञा भंग का दोष होता है । (६) ऐसा करने से संयम और आत्मा दोनों की विराधना होती है । (७) जुएँ मर जाती हैं। (८) नाई अपने उस्तरे और कैंची को सचित्त जल से साफ करता है, एतदर्थ पश्चात् कर्म दोष होता हैं। (8) जैन शासन की अवहेलना होती है। इन हेतुओं को संलक्ष्य में रखकर मुनि केशों को हाथ से नोंच डाले, यही उसके लिए श्रेयस्कर है। प्रस्तुत सूत्र में आपवादिक स्थिति का उल्लेख किया गया है, पर जैन धर्म के मर्म को समझने के लिए उत्सर्ग और अपवाद मार्ग को समझना आवश्यक है । आगमों के कितने ही विधान उत्सर्ग मार्ग के हैं और कितने ही विधान अपवाद मार्ग के हैं। अपवाद मार्ग के विधानों को जब कभी उत्सर्ग का रूप दे दिया जाता है, तब अर्थ का अनर्थ हो जाता है। श्रमण के लिए हाथ से केशलोच करना उत्सर्ग मार्ग है। उसके लिए अनिवार्य है कि वह लोच करे, पर रोगादि की विशेष परिस्थिति में अपवाद रूप से छुरा कैंची आदि अन्य साधन का भी उपयोग किया जा सकता है, परन्तु यह स्मरण रखना चाहिए कि वह उत्सर्ग मार्ग नहीं है।
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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