________________
३५२
मूल
--
वासावासं पज्जोसवियाणं कप्पड़ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा तओ मत्तगाईं गिण्हित्तए, तंजहा - उच्चारमत्त ए पासवणमत्त खेलमत्तए || २८३ ||
कल्पसूत्र
अर्थ - वर्षावास में रहे हुए श्रमणों और श्रमणियों को तीन पात्र ग्रहण करना कल्पता है । वे इस प्रकार ( १ ) शौच के लिए एक पात्र ( २ ) लघुशंका के लिए द्वितीय पात्र, (३) कफ आदि थूकने के लिए तृतीय पात्र ।
केश लुंचन
मूल :
वासावासं पज्जोसवियाणं नो कप्पड़ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा परं पज्जोसवणाओ गोलोमप्पमाणमित्ते वि केसे तं स्यणि उवायणावित्त, पक्खिया आरोवणा, मासिते खुरमुडे अद्धमासिए कत्तरिमुडे, छम्मा सिए लोए, संवच्छरिए वा थेरकप्पे ॥२८४||
अर्थ - वर्षावास में रहे हुए निर्ग्रन्थों और निर्ग्रन्थिनियों को सिर पर गाय के रोम जितने भी केश हों, तो इस प्रकार पर्युषणा के पश्चात् उस रात्रि को उल्लंघन करना नहीं कल्पता । अर्थात् वर्षाऋतु के बीस रात्रि सहित एक मास की अन्तिम रात्रि को गाय के रोम जितने भी केश शिर पर रखना नही कल्पता । अर्थात् इससे पहले ही केश लुंचन कर लेना चाहिए ।
पक्ष पक्ष में आरोपणा करनी चाहिए। एक एक माह से मुण्ड होना चाहिए। कैंची से मुण्ड होना चाहिए, लुचन से मुण्ड होने वाले चाहिए और स्थविरों को वार्षिक लोच करना चाहिए ।"
उस्तरे से मुण्ड होने वाले को मुण्ड होने वाले को पन्द्रह दिन को छह मास से मुंड होना