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________________ समाचारो : भिक्षावरी कल्प ३५१ उन्हें बांधते रहते हैं, प्रमाण रहित आसन रखते हैं, आसन आदि को धूप दिखाते नहीं है, पांच समितियों में सावधानी नही रखते हैं, पुनः पुनः प्रतिलेखना नहीं करते हैं, प्रमार्जन करने में सावधानी नहीं रखते हैं, उनको संयम की आराधना करना कठिन होता है। यह आदान (दोष) नहीं है जो निग्रन्थ और निर्ग्रन्थी शय्या और आसन का अभिग्रह करते हैं, उनको ऊँचे और स्थिर रखते हैं, उनको प्रयोजन के बिना पुनः पुनः बांधते नही हैं, प्रमाण पुरस्सर आसन रखते हैं, शय्या और आसन को धूप दिखाते हैं, पांच समिति में सावधान रहते हैं, बारम्बार प्रतिलेखना करते हैं, प्रमार्जना करने में पूर्ण सावधानी रखते है, उनको संयम की आराधना करना सुगम है । मल: ___ वासावासं पज्जोसवियाणं कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गथीण वा तओ उच्चारपासवणभूमीश्रो पडिलेहित्तए न तहा हेमंतगिम्हासु जहा णं वासावासेसु, से किमाहु भंते !? वासावासएसु णं ओसन्नं पाणाय तणा य बीया य पणगा य हरियायणा य भंवति ॥२८॥ अर्थ-वर्षावास में रहे हुए श्रमण और श्रमणियों को शौच के लिए या लघुशंका के लिए तीन स्थानों की प्रतिलेखना करना कल्पता है। जिस प्रकार वर्षाऋतु में करने का होता है उस प्रकार हेमन्त और ग्रीष्म ऋतु में करने का नहीं होता। प्रश्न- हे भगवन् ! यह किस दृष्टि से कहा है ? उत्तर-वर्षाऋतु में प्रायः इन्द्रगोपादि लघुजीव, बीज पनक, (लीलनफूलन) और हरित ये सभी प्रायः बारम्बार होते रहते ।
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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