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कम्प-सूत्र
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स्वीकार न करें, अथवा ध्यान रखने की अस्वीकृति करें तो उस भिक्षु को गृहपति के कुल की ओर निकलना और प्रवेश करना नहीं कल्पता यावत् कायोत्सर्ग करना या ध्यान के लिए किसी आसन से खड़ा रहना नहीं कल्पता । विवेचन - प्रस्तुत विधान अध्काय के जीवों की विराधना न हो इत्यादि दृष्टि से किया गया है । धूप में वस्त्रों को सुखाकर यदि श्रमण आहारा दि के लिए बाहर चला गया या साधना-आराधना में तल्लीन हो गया, उस समय कदाचित् वर्षा आ जाय तब उसके वे वस्त्रादि आर्द्र हो जाएँगे । अतः प्रत्येक साधना करते समय अहिंसा और विवेक की दृष्टि रखना अतीव आवश्यक हैं ।
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मूल :
वासवासं पज्जोसवियाणं नो कप्पड़ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा अणभिग्ग हियसेज्जासणियं होत्तए, आयाणमेतं, अणभि गहियसेज्जासणियस्सअणुच्चाकुइयस्स अणट्टाबंधिस्स अमियासणियस्स अणातावियरस असमियरस अभिक्खणं अभिक्खणं अप्पडिलेहणासीलस्स अप्पमज्जणासीलस्स तहा तहां णं संजमे दुराराहए भवइ, अणायाणमेतं, अभिग्गहियसेज्जासणियस्स उच्चाकुवियस्स अट्ठाबंधिस्स मियासणियस्स आयाविस्स समियस्स अभिक्खणं अभिक्खणं पडिलेहणासीलस्स पमज्जणासीलस्स तहा तहा णं संजमे सुआराहए भवइ ॥ २८९ ॥
अर्थ — वर्षावास में रहे हुए श्रमणों और श्रमणियों को शय्या और आसन का अभिग्रह किए बिना रहना नहीं कल्पता । इस प्रकार रहना आदान है, अर्थात् कर्मबन्ध या दोष का कारण है ।
जो श्रमण और श्रमणियां आसन का अभिग्रह नहीं करते, शय्या या आसन को जमीन से ऊंचा नहीं रखते तथा स्थिर नहीं रखते, बिना कारण ही