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समाचारी : मिक्षाचरी कल्प वा पविसित्तए वा असणं वा पाणं वा खाइम वा साइमं वा आहारित्तए, बहिया विहारभूमी वा वियारभूमि वा सज्झायं वा करित्तए, काउस्सग्गं वा ठाणं वा ठाइत्तए, अस्थि या इत्थ केइ अहासन्निहिए एगे वा अणेगे वा कप्पइ से एवं वदित्तए-इमं ता अजो ! तुमं मुहत्तगं जाणाहि जाव ताव अहं गाहावइकुलं जाव काउस्सग्गं वा ठाणं वा ठाइत्तए, से य से पडिमुणिज्जा एवं से कप्पइ गाहावइ तं चेव, से य से नो पडिसुणिजा एवं से नो कप्पड़ गाहावइकुलं जाव काउस्सग्गं वा ठाणं वा ठाइत्तए ॥२८॥
____ अर्थ-वर्षावास में रहा हुआ भिक्षु वस्त्र को, पात्र को अथवा कम्बल को, अथवा पादप्रोच्छन को, अथवा अन्य किसी भी उपाधि को धूप में तपाने को इच्छा करे, अथवा धूप मे बारम्बार तपाने की इच्छा करे तो एक व्यक्ति को या अनेक व्यक्तियों को सम्यक् प्रकार से बताए बिना गृहपति के कुल की ओर आहार के लिए, अथवा पानी के लिए निकलना और प्रवेश करना नहीं कल्पता है। अथवा अशन, पान, खादिम और स्वादिम का आहार करना नहीं कल्पता, बाहर विहार भूमि अथवा विचार भूमि की ओर जाना नहीं कल्पता, अथवा स्वाध्याय करना, कायोत्सर्ग करना, या ध्यान के लिए अन्य आसन आदि से खड़ा रहना नहीं कल्पता।
कोई एक अथवा अनेक साधु जो उपस्थित हों उनसे भिक्ष को इस प्रकार कहना चाहिए. हे आर्यो ! आप कुछ समय तक इधर ध्यान रखें जब तक कि मैं गृहपति के कुल की ओर जाकर आता हूं यावन् कायोत्सर्ग करके आता हूं अथवा ध्यान के लिए किसी आसन से खड़ा रहकर आता हूं। जो वे भिक्षुक की बात को स्वीकार करें और ध्यान रखने की स्वीकृति दें तो भिक्षुक को गृहपति के कुल की ओर आहार के लिए अथवा पानी के लिए निकलना और प्रवेश करना कल्पता है, यावत् कायोत्सर्ग करना, या ध्यान के लिए किसी आसन से खड़ा रहना कल्पता है । जो वे साधु या साध्वियां उस भिक्षु की बात