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समाचारी : मिक्षाचरी कल्प : पाठ सूक्ष्म
कृष्ण पुष्प सूक्ष्म, (२) नीला पुष्प सूक्ष्म, (३) लाल पुष्प सूक्ष्म, (४) पीला पुष्प सूक्ष्म (५) श्वेत पुष्प सूक्ष्म । ये पुष्प सूक्ष्म जिस वृक्ष पर उत्पन्न होते हैं उस वृक्ष के रंग के सदृश रंग वाले होते है। छद्मस्थ निग्रन्थ या निर्गन्थिनी को उन्हें सम्यक् प्रकार जानना चाहिए, देखना चाहिए और प्रतिलेखन करना चाहिए । यह पुष्पसूक्ष्म की विवेचना हुई।
मल:
से किं तं अंडसहुमे ? अंडसहुमे पंचविहे पन्नत्ते, तं जहाउद्दसंडे उक्कलियंडे पिपीलियंडे हलियंडे हल्लोहलियंडे, जे छउमत्थेणं निग्गंथेण वा निग्गंथीण वा जाव पडिलेहियब्वे भवइ, से तं अंडसुहुमे ६ ॥२७१॥
अर्थ-प्रश्न-हे भगवन् वह अंड सूक्ष्म क्या है ?
उत्तर-जो अण्डा अत्यन्त बारीक हो, आंखों से भी नहीं देखा जा सके वह अण्ड सूक्ष्म है । अण्डसूक्ष्म पांच प्रकार का है। जैसे (१) मधुमक्षिका आदि दंश देने वाले प्राणियों के अण्डे । (२) मकड़ी के अण्डे, (३) चींटियों के अण्डे (४) छिपकली के अण्डे, (५) काकोडा (गिरगिट) के अण्डे । छद्मस्थ निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थिनियों को, ये अण्डे सम्यक् प्रकार जानने चाहिए, देखने चाहिए और प्रतिलेखन करने चाहिए । यह अण्डसूक्ष्म की विवेचना हुई।
मूल :
से कि तं लेणसुहुमे ? लेणसुहुमे पंचविहे पन्नत्ते, तं जहाउत्तिंगलेणे भिंगुलेणे उज्जुए तालमूलए संवोकावट्टे नाम पंचमे, जे छउमत्येणं निग्गंथेण वा निग्गंथीए वा अभिक्खणं अभिक्खणं जाणियव्वे जाव पडिलेहियव्वे भवइ से तं लेणसुहमे ७ ॥२७२॥