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अर्थ- प्रश्न - हे भगवन् लयन सूक्ष्म क्या है ।
उत्तर - लेण (लयन) अर्थात् बिल जो अत्यन्त बारीक होने से साधारण आंखों से देखा न जा सके, वह लयनसूक्ष्म है । लयनसूक्ष्म पाँच प्रकार का है, जैसे - गधेया आदि जीव अपने रहने हेतु पृथ्वी में जमीन को खोदकर बिल बनाते हैं वह उत्तिगण है । (२) पानी सूखने के पश्चात् जहाँ पर बड़ी-बड़ी दरारें पड़ गई हों उनमें जो बिल बनाये गये हों वह भिगुलेण है । (३) बिलभोण (४) ताड़ के मूल जैसी आकृतिवाला बिल जो ऊपर से संकुचित और अन्दर से विस्तृत होता है वह तालमूलक है । (५) शंख के सदृश आकृति वाला जो बिल होता है वह शंबूकावर्त है, जैसे भ्रमर के बिल । छद्मस्थ निम्र न्य और निर्ग्रन्थी को ये बिल बारम्बार जानने, देखने और प्रतिलेखना करने योग्य है । यह लेणसूक्ष्म की विवेचना हुई ।
मूल :
से किं तं सिणेहसुदुमे ? सिणेहसुहुमे पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा - उस्सा हिमए महिया करए हरतणुए, जे छउमत्थेणं निम्गंथेण वा निग्गथीण वा जाव पडिलेहियव्वे भवह, से त्तं सिणेह
सुहुमे
८ ॥ २७३॥
अर्थ - प्रश्न - वह स्नेह सूक्ष्म क्या है ?
उत्तर
- स्नेह अर्थात् आर्द्रता, जो आर्द्रता शीघ्र ही दृष्टिगोचर न हो ( जसे - धुअर, ओले, बर्फ, ओस आदि ) वह स्नेह सूक्ष्म है । स्नेह सूक्ष्म पांच प्रकार का है। जैसे - (१) ओस, (२) हिम, (३) घूमस, (४) गडे, (५) हरतनु-भूमि से उठकर घास के अग्रभाग पर अवस्थित पानी की सूक्ष्म बूदें । astr निग्रन्थ और निर्ग्रन्थिनियों को ये पाँच स्नेह सूक्ष्म अच्छी प्रकार जानने, देखने और प्रतिलेखन करने योग्य है ।
इस प्रकार यह आठ सूक्ष्मों की विवेचना हुई ।