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मूल :
से किं तं हरियसुहुमे ? हरियसुहुमे पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा-किण्हे जाव सुकिल्ले, अस्थि हरियसुहुमे पुढवीसमाणवन्नए, जे छउमत्येणं निग्गंथेण वा निग्गंथीण वा, अभिक्खणं अभिक्खणं जाणियव्वे जाव पडिलेहियब्वे भवइ,सेत्तं हरियसुहुमे ४॥२६६।।
अर्थ-प्रश्न-हे भगवन् वह हरितसूक्ष्म क्या है ?
उत्तर-हरित अर्थात् अभिनव उत्पन्न हुआ अत्यन्त बारीक नेत्रों से भी न निहारा जाग वैसा हरित । वह हरित सूक्ष्म पाँच प्रकार का कहा गया है । वह जैसे-(१) कृष्ण हरित सूक्ष्म, (२) नीला हरित सूक्ष्म, (३) लाल हरित सूक्ष्म, (४) पीला हरित सूक्ष्म, (५) श्वेत हरित सूक्ष्म । ये हरित सूक्ष्म पृथ्वी पर उत्पन्न होते हैं। जिस पृथ्वी का जैसा रंग होता है वैसा ही रग उस हरित सूक्ष्म का होता है । छमस्थ निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थिनी को उसे बारम्बार जानना, देखना और प्रतिलेखन करना चाहिए । यह हरित सूक्ष्म का कथन हुआ। मल:
से किं तं पुप्फसुहुमे ? पुप्फसहुमे पंचविहे पन्नत्ते, तं जहाकिण्हे जाव सुकिल्ले, अत्थि पुप्फसहुमे रुक्खसमाणवन्ने नाम पन्नत्ते, जे छउमत्थेणं निग्गथेण वा निगंथीण वा अभिक्खणं अभिक्खणं जाणियव्वे जाव पडिलेहियव्वे भवति, से तं पुप्फसुहमे ५॥२७॥
अर्थ - प्रश्न-हे भगवन् ! वह पुष्पसूक्ष्म क्या है ?
उत्तर-जो पुष्प अत्यन्त बारीक हो, साधारण नेत्रों से न निहारा जा सके । जैसे वट उदुम्बर आदि के फूल श्वास मात्र से जिनकी विराधना हो सकती है, वह पुष्पसूक्ष्म होता है। यह पुष्प सूक्ष्म पांच प्रकार का है- (१)