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________________ ན་ उत्तर - कारण यह है कि प्रायः उस समय गृहस्थो के गृह चारों ओर से चटाई आदि से आच्छादित होते हैं । चूने आदि से पोते हुए होते हैं । घास आदि से ढंके हुए होते हैं । चारदीवारी से सुरक्षित होते हैं । घिसघिसाकर विषम भूमि को सम किए हुए व मुलायम बनाये हुए होते हैं । सुवासित धूपों से सुगन्धित किए हुए होते हैं । पानी निकलने के लिए परनाले आदि बनाए हुए होते हैं, घरों के बाहर नालियां आदि खुदवाई हुई होती हैं । वे घर, गृहस्थ स्वय के लिए अच्छा करता है । वे घर गृहस्थ के उपयोग में लिए हुए होते हैं । स्वयं के रहने के लिए वह उन्हें साफ कर जीव जन्तु रहित बनाता है एतदर्थ यह कहा जाता है कि श्रमण भगवान् महावीर वर्षाऋतु के बीस रात्रि सहित एक मास व्यतीत होने पर वर्षावास रहे । मल : ३१८ जहा णं समणे भगवं महावीरे वासाणं सवीसइराए मासे aisa'ते वासावासं पज्जोसवेइ तहा णं गणहरा वि वासाणं सवीसइराए मासे विइक्क ते वासावासं पज्जोसविंति ॥ २२६ ॥ अर्थ - जैसे श्रमण भगवान महावीर वर्षाऋतु का बीस रात्रि सहित एक मास व्यतीत होने पर वर्षावास रहे हैं वैसे ही गणधर भी वर्षाऋतु का बीस रात्रि सहित एक मास व्यतीत होने पर वर्षावास रहे हैं । मूल :-- जहा णं गणहरा वासाणं जाव पज्जोसर्वेति तहा णं गणहरसीसा वि वासाणं जाव पज्जोसविंति ॥ २२७॥ अर्थ – जैसे गणधर वर्षाऋतु के बीस रात्रि सहित एक मास व्यतीत होने पर वर्षावास रहे, वैसे ही गणधरों के शिष्य भी वर्षाऋतु के बीस रात्रि सहित एक मास व्यतीत होने पर वर्षावास रहे हैं ।
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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