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समाचारी : बर्षावास कल्प
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मूल :
जहा णं गणहरसीसा वासाणं जाव पजोसर्विति तहा णं थेरा वि वासाणं जाव पजोसर्विति ॥२२८॥
अर्थ-जैसे गणधरों के शिष्य वर्षाऋतु का बीस रात्रि सहित एक मास व्यतीत होने पर वर्षावास रहे हैं वैसे ही स्थविर भी वर्षाऋतु का बीस रात्रि सहित एक मास व्यतीत होने पर वर्षावास रहे है । मूल :
जहा णं थेरा वासाणं जाव पजोसर्विति तहा णं जे इमे अजत्ताए समणा निग्गंथा विहरति एए वि णं वासाणं जाव पजोसर्विति ॥२२६॥
अर्थ - जैसे स्थविर वर्षाऋतु का बीस रात्रि सहित एक मास व्यतीत होने के पश्चात् वर्षावास रहे, वैसे ही आजकल जो श्रमण निर्ग्रन्थ विचरते हैंया विद्यमान है, वे भी वर्षाऋतु के बीस रात्रि सहित एक मास व्यतीत होने पर वर्षावास रहते है। मूल :
जहा णं जे इमे अज्जत्ताए समणा निग्गंथा वासाणं सवीसइराए मासे विइक ते वासावासं पज्जोसर्विति तहा णं अम्हं पि आयरियउवज्झाया वासाणं सवीसइराए मासे विइकते वासावासं पज्जोसर्वेति ॥२३०॥
अर्थ-जैसे आजकल श्रमण निग्रन्थ वर्षाऋतु का बोस रात्रि सहित एक मास व्यतीत होने पर वर्षावास रहते हैं, वैसे ही हमारे भी आचार्य उपाध्याय वर्षाऋतु का बीस रात्रि सहित एक मास व्यतीत होने पर वर्षावास रहते हैं।