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समाचारी --. वर्षावास कल्प मूल :
तेणं काले णं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे वासाणं सवीसइराए मासे विइक्कते वासावासं पजोसवेइ ॥२२४॥
अर्थ-उस काल उस समय श्रमण भगवान महावीर वर्षाऋतु का बीस रात्रि सहित एक मास व्यतीत होने पर अर्थात् आषाढ़ी चातुर्मासी होने के पश्चात् पचास दिन व्यतीत होने पर वर्षावास रहे ।' मूल :
से केण?णं भंते ! एवं बुचइ-समणे भगवं महावीरे वासाणं सवीसइराए मासे विइक ते वासावासं पज्जोसवेइ ? जतो णं पाएणं अगारीण अगाराइं कडियाइं उक्त पियाई छन्नाई लित्ताई घट्ठाई महाई संपधूमियाइं खाओदगाइं खातनिद्धमणाई अप्पणो अहाए कयाई परिभोत्ताई परिणामियाई भवंति से एतेण ऽहणं एवं वुच्चइ समणे भगवं महावीरे वासाणं सवीसइराए मासे वीइक ते वासावासं पज्जोसवेति ॥२२५॥
अर्थ प्रश्न-हे भगवन् ! किस कारण से इस प्रकार कहा जाता है कि श्रमण भगवान महावीर वर्षाऋतु का बीस रात्रि सहित एक मास व्यतीत होने पर वर्षावास रहे ?