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कल्प सू
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जगमगा रहा है । आगम साहित्य वर्तमान में जिस रूप में आज उपलब्ध है उसका सम्पूर्ण श्रेय आचार्य देवद्धिगणी क्षमाश्रमण को ही है ।
आपका जन्म वेरावल (सौराष्ट्र) में हुआ था । आपके पिता का नाम काम और माता का नाम कलावती था। कहा जाता है कि भगवान् महावीर के समय जो सौधर्मेन्द्र शक्रेन्द्र का सेनापति हरिणगमेषी देव था वहो आयु पूर्ण कर देवधिगणी बना । प्रस्तुत स्थविरावली के अनुसार कुमार धर्मगणी के पट्टधर देवधिगणी हैं । नन्दी सूत्र की चूर्णि के अनुसार उनके गुरु का नाम दुष्य गणी है और नन्दी सूत्र की पट्टावली के अनुसार उनके गुरु का नाम आचार्य लोहित्यसूरि था । उपकेशगच्छीय आर्य देवगुप्त के पास उन्होंने एक पूर्व तक अर्थ सहित और दूसरे पूर्व का मूल पढ़ा था । आप अन्तिम पूर्वधर थे । आपके बाद कोई भी पूर्वघर नहीं हुआ । ११० आपका द्वितीय नाम देववाचक भी विश्रुत
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एक विराट्
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है ।"" वीर सवत् ६८० के आसपास वलभी ( सौराष्ट्र) में
श्रमण सम्मेलन हुआ, जिसका कुशल नेतृत्व आप ही ने किया । वहाँ पाँचवी आगम वाचना हुई । आगम पुस्तकारूढ़ किये गये । इस आगम वाचना में नागार्जुन की चतुर्थ वलभी वाचना के गम्भीर अभ्यासी चतुर्थ कालकाचार्य विद्यमान थे । ये बही कालकाचार्य थे जिन्होंने वीर संवत् ६६३ में आनन्दपुर में राजा ध्रुवसेन के सामने श्री संघ को कल्पसूत्र सुनाया था ।
इस प्रकार आचार्य देवधिगणी को नमस्कार के साथ यह स्थविरावली का प्रकरण समाप्त होता है ।
स्थविरावली सम्पूर्ण