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________________ स्थविरावली: देवद्विगणी क्षमाश्रमण विवेचन - आर्य धर्म के आर्य स्कन्दिल और आर्य जम्बू ये दो प्रमुख शिष्य रत्न थे । आर्य स्कन्दिल की जन्मभूमि मथुरा थी । गृहस्थाश्रम में आपका नाम सोमरथ था । आर्य सिंह के वैराग्य रस से परिपूर्ण प्रवचन को श्रवणकर संसार से विरक्ति हुई और आर्य धर्म के सन्निकट प्रव्रज्या स्वीकार की । ब्रह्मदीपिका शाखा के वाचनाचार्य आर्यसिंह सूरि से आगमों (पूर्वी) का तलस्पर्शी अध्ययन किया और वाचक पद प्राप्त किया तथा युग प्रधान आचार्य बने । २१५ इतिहासज्ञो का अभिमत है कि उस समय भारत की विचित्र परिस्थिति थी । हूणों और गुप्तों में भयकर युद्ध हुआ था । द्वादशवर्षीय दुष्काल से मानव समाज जर्जरित हो चुका था । १०" जैन, बौद्ध और वैदिक धर्म के अनुयायी भी एक दूसरे का खण्डन मण्डन कर रहे थे । इत्यादि अनेक कारणों से आगमज्ञ श्रुतधरों की संख्या दिनानुदिन कम होती चली जा रही थी । उस विकट वेला मे आर्य स्कन्दिल ने श्रुत की सुरक्षा के लिए मथुरा में उत्तरापथ के मुनियों का एक सम्मेलन बुलवाया और आगमों का पुस्तकों के रूप में लेखन किया । यह सम्मेलन वीर सं० ८२७ से ८४० के आस पास हुआ था ।" उधर आचार्य नागार्जुन ने भी वल्लभी ( सौराष्ट्र ) में दक्षिणापथ के मुनियों का सम्मेलन बुलाया और आगमों का लेखन व संकलन किया । यह सम्मेलन दूर-दूर होने के कारण स्थविर एक दूसरे के विचारों से अवगत नहीं हो सके अतः पाठों में कुछ स्थलों पर भेद हो गये । उपर्युक्त वाचनाओं को सम्पन्न हुए लगभग डेढ़ सौ वर्ष से भी अधिक समय व्यतीत हो गया तब वलभी नगर मे देवधिगणी क्षमा श्रमण की अध्यक्षता में श्रमण संघ एकत्रित हुआ। दोनों वाचनाओं के समय जिन-जिन विषयों में मतभेद हो गया था उन भेदों का देवद्धिगणी क्षमा श्रमण ने समन्वय किया । जिन पाठों में समन्वय न हो सका उन स्थलों पर स्कन्दिलाचार्य के पाठ को प्रमुखता देकर नागार्जुन के पाठों को पाठान्तर के रूप में स्थान दिया । टीकाकारों ने 'नागार्जुनीयास्तु पठन्ति' के रूप में उनका उल्लेख किया है । यह आगमों की चतुर्थ वाचना है । आचार्य dafaगणी - आचार्य प्रवर देवगणी क्षमाश्रमण जैन आगम साहित्य के प्रकाशमान नक्षत्र हैं। उनकी प्रखर प्रभा से आज भी जैन साहित्य
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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