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________________ ३०६ स्थविरावली : विभिन्न शाखाए : आर्य रक्षित अज्जपउमेहिंतो एत्थ णं अज्जपउमा साहा निग्गया। थेरेहितो णं अज्जरहेहिंतो एत्थ णं अज्जजयंती साहा निग्गया ॥२२१॥ ___अर्थ-गौतमगोत्रीय स्थविर आर्यवज्र के ये तीन स्थविर पुत्र समान एवं सुख्यात अन्तेवासी थे। जैसे कि-(१) स्थविर आर्यवज्रसेन, (२) स्थविर आर्य पद्म, (३) स्थविर आर्य रथ । स्थविर आर्यवज्रसेन से आर्य नाईली (नागिलो) शाखा निकली, स्थविर आर्यपद्म से आर्य पद्मा शाखा निकली, और स्थविर आर्य रथ से आर्य जयन्ती शाखा निकली। विवेचन-आर्य वज्रस्वामी के पद पर आर्य वज्रसेन आसीन हए । इनके समय भयंकर दुर्भिक्ष पड़ा। निर्दोष भिक्षा का मिलना असंभव हो गया, जिसके कारण ७८४ श्रमण अनशन कर परलोकवासी हुए । क्षुधा से सभी छटपटाने लगे। जिनदास श्रेष्ठी ने एक लाख दीनार से एक अजलि अन्न मोल लिया । वह दलिया में विष मिलाकर समस्त परिवार के साथ खाने को तैयारी कर रहा था कि आचार्य वज्रस्वामी के कहने के अनुसार आपने सुभिक्ष की घोषणा की और सबके प्राणों की रक्षा की। दूसरे ही दिन अन्न से परिपूर्ण जहाज आ गए। जिनदास ने वह अन्न लेकर बिना मूल्य लिए दोनों को वितरण कर दिया । कुछ समय के पश्चात् वर्षा हो जाने से सर्वत्र आनन्द की मियां उछलने लगी । जिनदास सेठ ने अपनी विराट सम्पत्ति को जनकल्याण के लिए न्यौछावर कर अपने नागेन्द्र, चन्द्र, निवृत्ति और विद्याधर आदि चार पुत्रों के साथ दीक्षा ग्रहण की। आर्य वज्रसेन प्रतिभा सम्पन्न आचार्य थे । दुकाल के परिसमाप्त होने पर उन्होंने पुनः श्रमण संघ को एकता के सूत्र में पिरोया और श्रमण संघ में अभिनव चेतना जागृत की। कितु इस दुष्काल से अनेक श्रमणों का स्वर्गवास हो जाने से कई वंश, कुल, व गण विच्छेद हो गए। • आर्य रक्षित आर्य वज्रसेन के ही समय में आगमवेत्ता आर्यरक्षित सूरि हुए । उनकी
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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