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________________ ३०८ कल्प सूत्र वज्रस्वामी की शाखा में अनेक वज्र नाम के प्रभावशाली, युगपुरुष, दार्शनिक और भविष्यद्रष्टा आचार्य हुए हैं। ईस्वी सन् ६४६ में चीनी यात्री हुएनत्सांग भारत आया था । नालन्दा से वह पुनः अपने देश जाना चाहता था, किन्तु असहाय था । उस समय वज्र स्वामी ने उससे कहा- तुम चिन्ता न करो असम के राजा कुमार और कान्यकुब्ज के राजा श्रीहर्ष तुम्हारी सहायता करेंगे । राजा कुमार का दूत तुम्हें लिवाने के लिए आ रहा है। वज्रस्वामी की ये भविष्य वाणियां पूर्ण सत्य सिद्ध हुई। हुएनत्साग ने अपनी यात्रा की पुस्तक में उनका महान् भविष्यद्रष्टा के रूप में उल्लेख किया है । एक बार वज्रस्वामी को कफ को व्याधि हो गई। तदर्थ उन्होने एक सोंठ का टुकड़ा भोजन के पश्चात् ग्रहण करने हेतु कान में डाल रखा था, पर वे उसे लेना भूल गए। सांध्य प्रतिक्रमण के समय वन्दन करते समय वह नीचे गिर गया। अपना अन्तिम समय सनिकट समझ अपने शिष्य वज्रसेन से कहाद्वादशवर्षीय दुष्काल पड़ेगा, अतः साधु संघ के साथ तुम सौराष्ट्र और कोंकण प्रदेश में जाओ और मैं रथावर्त पर्वत पर अनशन करने जाता हूं। जिस दिन तुम्हें लक्ष मूल्य वाले चावल में से भिक्षा प्राप्त हो, उसके दूसरे दिन सुकाल होगा, ऐसा कह आचार्य संथारा करने हेतु चल दिये।। ___ वज्र स्वामी का जन्म वीर निर्वाण स० ४६६ में हुआ। ५०४ (पाँच सौ चार) में दीक्षा ग्रहण की, ५३६ मे आचार्य पद पर आसीन हुए और ५८४ में स्वर्गस्थ हुए । मल: थेरस्स णं अज्जवइरस्स गोतमसगोत्तस्स इमे तिन्नि थेरा अन्तेवासी अहावचा अभिन्नाया होत्था, तं जहा-थेरे अज्जवइरसेणिए थेरे अज्जपउमे थेरे अज्जरहे। थेरेहितो णं अज्जवइरसेणिएहिंतो एत्थ णं अज्जनाइली साहा निग्गया। थेरेहिंतो णं
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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