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________________ स्थाबरावली: विभिन्न शाखाएँ २६६ अर्थ-भारद्वाज गोत्रीय स्थविर भद्दजस (भद्रयश) से यहां उड़वाड़ियगण (ऋतुवाटिक) नामक गण निकला। उसकी ये चार शाखाएँ निकली, और तीन कुल निकले, इस प्रकार कहा जाता है। प्रश्न-वे कौनसी-कौनसी शाखाएं हैं ? उत्तर - वे शाखाएँ ये हैं, जैसे- (१) चंपिज्जिया, (२) भद्दिज्जिया (भद्रीया)" (३) काकंदीया, (४) मेहलिज्जिया'", (मैथिलीया)। प्रश्न-वे कुल कौन से है ? उत्तर-वे कुल इस प्रकार हैं-(१) भद्दजसिय (भद्रयशीय), (२) भद्रगुत्तिय (भद्रगुप्तीय), (३) जसभद्र (यशोभद्रीय) कुल ये तीनों कुल, उडुवाडिय (ऋतुवाटिका)", कुल के है । मूल : थेरेहिंतो णं कामिड्ढिहितो कुडिलसगोत्तेहिंतो एत्थ णं वेसवाडियगणे नामं गणे निग्गए ! तस्स णं इमाओ चत्तारि साहाओ चत्तारि कुलाइं एवमाहिजति । से किं तं साहाओ? एवमाहिजति-सावत्थियारजपालिया अन्तरिजिया खेमलिज्जिया से तं साहाओ। से किं तं कुलाई ? एवमाहिज्जति गणियं मेहिय कामड्ढियं च, तह होइ इंदपुरगं च। एयाई वेसवाडियगणस्स चत्तारि उ कुलाइ ॥१॥२१४॥ अर्थ-कुडिलगोत्रीय कामिड्डि स्थविर से यहाँ वेसवाडियगण नामक गण निकला। उससे चार शाखाएँ और चार कुल निकले। प्रश्न-वे शाखाएँ कौनसी-कौनसी हैं । उत्तर-वे शाखाएँ इस प्रकार हैं-(१) सावत्थिया (श्रावस्तिका), (२)
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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