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पढमेत्थ वच्छलिज, बीयं पुण वीचिधम्मकं होइ ।' तइयं पुण हालिज, चउत्थगं पूसमित्तेज्जं ॥१॥ पंचमगं मालिज, छट्ठ पुण अज्जचेडयं होइ। सत्तमगं कण्हसहं, सत्त कुला चारणगणस्स ॥२॥२१२॥
अर्थ-हारियगोत्रीय स्थविर सिरिगुत्त से यहाँ चारणगण नाम का गण निकला । उसकी ये चार शाखाएँ और सात कुल हुए।
प्रश्न-वे शाखाएँ कौनसी-कौनसी हैं ?
उत्तर-शाखाएँ इस प्रकार हैं:-(१) हारियमालागारी (२) संकासोआ (३) गवेधुया (४) वज्जनागरी ये चार शाखाएँ हैं।
प्रश्न-वे कुल कौनसे हैं ?
उत्तर-कुल इस प्रकार हैं-(१) प्रथम वत्सलीय, (२) द्वितीय पीईधम्मिअ (प्रीतिधर्मक), (३) तृतीय हालिज्ज (हालीप), (४) चतुर्थ पूसमित्तिज्ज (पुष्पमित्रीय), (५) पांचवें मालिज्ज (मालीय), (६) छठे अज्जचेडय (आर्यचेटक), (७) सातवें कण्हसह (कृष्णसख)। चारण गण के ये मात कुल हैं। मूल :
थेरेहिंतो भदजसेहिंतो भारहायसगोत्तेहिंतो एत्थ णं उडुवाडियगये नामं गणे निग्गए। तस्स णं इमाओ चत्तारि साहाओ तिन्नि कुलाइंएवमाहिज्जति । से किं तं साहाओ ? एवमाहिज्जति, तं जहा-चंपिजिया भदिदजिया काकंदिया मेहलिजिया, से तं साहाओ । से किं तं कुलाई ? एवमाहिजति
भदजसियं तह भदगुत्तियं, तइयं च होइ जसभदं ।
एयाइं उडुवाडियगणस्स, तिन्न व य कुलाइं ॥१॥२१३॥ • गोयं पुण पोइषम्मयं होड। -पाठान्तरे