SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 327
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स्थली आये भद्रबाहु २८६ आर्य · भद्रबाहु ये जैन संस्कृति के एक ज्योतिर्धर आचार्य थे। जैन आगमों पर सर्वप्रथम व्याख्यात्मक चिन्तन के रूप में आपने ही नियुक्तियों की सर्जना की है। मंत्रशास्त्र और ज्योतिष के प्रकाण्ड विद्वान थे। जैन साहित्य सर्जना के ये आदिपुरुष माने जा सकते हैं । आगमव्याख्याता, इतिहासकार और साहित्य के नवसर्जक के रूप में वस्तुत. आचार्य भद्रबाहु अपने युग के बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न एवं प्रभावशाली आचार्य थे । आपका जन्म प्रतिष्ठानपुर नगर में हुआ था । ४५ वर्ष की वय में आर्य यशोभद्र के पास प्रब्रज्या ग्रहण की, सत्तरह वर्ष तक साधारण मुनि अवस्था में रहे और चौदह वर्ष तक युगप्रधान आचार्य पद पर । वीर संवत् १७० में ७६ वर्ष की आयु में स्वर्गस्थ हुए । आर्य प्रभव से प्रारम्भ होने वाली श्रुतकेवली परम्परा में भद्रबाहु पंचम श्रुतकेवली है, चतुर्दश पूर्वधर हैं । उनके पश्चात् कोई भी साधक चतुपूर्वी नहीं हुआ । अतः ये अन्तिम श्रुतकेवली माने जाते हैं । 1 3 दशाश्रुत, बृहत्कल्प, व्यवहार और कल्पसूत्र ये आपके द्वारा रचे गये हैं । आवश्यक निर्युक्ति आदि दस निर्युक्तियों की रचना भी आपने की है । आवश्यक नियुक्ति तो वस्तुत: जैन साहित्य का एक 'आकर' ग्रन्थ है, जिसमें सर्वप्रथम इस अवसर्पिणी काल के जैन महापुरुषों का जीवन चरित्र ग्रथित हुआ | आपने सपादलक्ष गावाबद्ध वसुदेव चरित्र ( प्राकृत भाषा में) लिखा था । चमत्कारी उवसग्गहर स्तोत्र भी आप ही की रचना है। इस कृति के सम्बन्ध में अनुश्रुति है कि वराहमिहिर संहिता का रचयिता वराहमिहिर आपका लघुभ्राता था । उसने भी आर्हती दीक्षा ग्रहण की थी। जब स्थूलिभद्र को आचार्य पद देना निश्चित हुआ तब वह ईर्ष्या से भ्रमण परिधान का परित्याग कर गृहस्थ बन गया, और वराहमिहिर संहिता का निर्माण किया । विद्वानों की यह धारणा है कि वर्तमान में जो वराहमिहिर संहिता उपलब्ध है, वह उससे भिन्न है। जब वह मरकर व्यन्तर देव हुआ तब पूर्व वैर से जैन शासनानुरागियों को उपसर्गं देने लगा, तब आचार्य ने प्रस्तुत स्तोत्र की रचना की, जिसके पाठ से सारे उपसर्ग नष्ट हो गये । ७४
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy