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________________ २८८ कम्प सूत्र एवं पलोइजइ, तं जहा-थेरस्स णं अजजसभहस्स इमे दो थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिन्नाया होत्था, तं जहा-थेरे अज्जमहबाहू पाईणसगोत्ते, थेरे अज्ज संभयविजये माढरसगोत्ते । थेरस्स णं अज्जभद्दबाहुस्स पाईणगोत्तस्स इमे चत्तारि थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिण्णाया होत्था, तं जहा-थेरे गोदासे थेरे अग्गिदत्ते थेरे जण्णदत्ते थेरे सोमदत्ते कासवगोत्ते णं। थेरेहिंतो णं गोदासेहिंतो कासवगोत्तेहिंतो एत्थ णं गोदासगणे नामं गणे निग्गए, तस्स णं इमाओ चत्तारि साहाओ एवमाहिज्जंति, तं जहातामलित्तिया कोडीवरिसिया पोंडवद्धणिया दासीखब्वडिया।२०७॥ अर्थ-अब आर्य यशोभद्र से आगे की स्थविरावली विस्तृत वाचना से इस प्रकार दृष्टिगोचर होती है। जैसे तुगियान गोत्रीय स्थविर आर्य यशोभद्र के पुत्र-समान ये दो प्रख्यात स्थविर अन्तेवासी थे। जैसे-प्राचीन गोत्रीय आर्य भद्रबाहु स्थविर और माठर गोत्री आर्य संभूतविजय स्थविर । प्राचीन गोत्रीय आर्य भद्रबाहु स्थविर के पुत्र के समान, प्रख्यात ये चार स्थविर अन्तेवासी थे। जैसे- १) स्थविर गोदास, (२) स्थविर अग्निदत्त, (३) स्थविर यज्ञदत्त और (४) स्थविर सोमदत्त, ये चारों स्थविर काश्यप गोत्रीय थे। काश्यप गोत्रीय स्थविर गोदास से गोदास गण प्रारम्भ हुआ। उस गण की ये चार शाखाएँ इस प्रकार हैं। जैसे-(१) तामलित्तिया (ताम्रलिप्तिका), (२) कोडिवरिसिया (कोटिवर्षीया), (३) पंडुबद्धणिया (पौण्ड्रवर्धनिका), (४) दासी खब्बडिया (दासीकर्पटिका)। विवेचन-संक्षिप्त स्थविरावली में आर्य संभूतविजय का नाम प्रथम आया है और आर्य भद्रबाहु का द्वितीय । किन्तु इस विस्तृत स्थविरावली में प्रथम भद्रबाहु का नाम आया है और फिर संभूतविजय का। पट्टवलीकार का भी यही अभिमत है कि संभूतविजय के लघु गुरुभ्राता भद्रबाहु थे और यशोभद्र के पश्चात् उनके दोनों ही शिष्य पट्टधर बने थे।
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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