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स्थविरावली : गणधर - चरित्र
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वि थेरा तिन्नि तिन्नि समणसयाई वाइंति, थेरे मेयज्जे थेरे य भासे एए दोन्नि वि थेरा कोडिन्ना गोत्तेणं तिन्नि तिन्नि समणसयाई वाएंति से एतेणं अद्वेणं अज्जो ! एवं वुच्चइसमणस्स भगवओ महावीरस्स नव गणा एक्कारस गणहरा होत्था ॥ २०२ ॥
अर्थ - -प्रश्न- - भगवन् ! यह किस दृष्टि से कहा जाता है कि श्रमण भगवान महावीर के नौ गण और ग्यारह गणधर थे ?
उत्तर- श्रमण भगवान महावीर के ज्येष्ठ शिष्य इन्द्रभूति नामक गौतम गोत्रीय अनगार पाँचसो श्रमणों को वाचना देते थे । द्वितीय शिष्य अग्निभूति नामक गौतम गोत्रीय अनगार ने पाँचसी श्रमणों को वाचना दी । तृतीय शिष्य लघु अनगार वायुभूति गौतम गोत्रीय ने पांच सौ श्रमणों को वाचना दी । चतुर्थ शिष्य आर्य व्यक्त भारद्वाज गोत्रीय स्थविर ने पांच सौ श्रमणों को वाचना दी । पाँचवें शिष्य आर्य सुधर्मा नामक अग्निवेशायन गोत्रीय स्थविर ने पाँच सौ श्रमणों को वाचना दी । छट्ठे शिष्य मण्डितपुत्र नामक वासिष्ठ गोत्रीय स्थविर ने तीन सौ पचास श्रमणों को वाचना दी। सातवें शिष्य मौर्यपुत्र नामक काश्यप गोत्रीय स्थविर ने तीन सौ पचास श्रमणों को वाचना दी। आठवें शिष्य अकंपित नामक गोत्रीय स्थविर ने और नौवें शिष्य अचलभ्राता नामक हरितायन गोत्रीय स्थविर ने तीन सौ श्रमणों को वाचना दी। दशवें शिष्य मेतार्य नामक कौडिन्य गोत्रीय स्थविर ने और ग्यारहवें शिष्य प्रभास नामक स्थविर ने तीन सौ-तीन सौ श्रमणों को वाचना दी ।
एतदर्थ हे आर्यो ! ऐसा कहा जाता है कि श्रमण भगवान महावीर के नौ गण और ग्यारह गणधर थे । अर्थात् आठवें नौवें गणधर की एक वाचना थी और दशवें व ग्यारहवें गणधर की भी एक वाचना थी । श्रमण भगवान महावीर के विराजते हुए ही नौ गणधर अपना गण आर्य सुधर्मा को देकर मोक्ष चले गये थे । '
विवेचन - इन्द्रभूति गौतम भगवान् महावीर के प्रधान शिष्य थे । मगध की राजधानी राजगृह के पास गोर्वर ( गोबर गाँव) ग्राम के रहने वाले थे,
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