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________________ २७८ कम्प सूत्र जो आज नालन्दा का ही एक विभाग माना जाता है । उनके पिता वसुभूति' और माता 'पृथ्वी' थी। उनका नाम यद्यपि इन्द्रभूति था पर अपने गोत्राभिधान 'गौतम"" इस नाम से ही वे अधिक विश्रुत थे। पचास वर्ष की आयु में आपने पांच सौ छात्रों के साथ प्रव्रज्या ग्रहण की, तीस वर्ष तक छद्मस्थ रहे, और बारह वर्ष जीवन्मुक्त केवली । गुणशील चैत्य में मासिक अनशन करके बानवे (९२) वर्ष की उम्र में निर्वाण को प्राप्त हुए ।". ___ अग्निभति-अग्निभूति इन्द्रभूति गौतम के मझले भाई थे। छयालीस वर्ष की अवस्था मे दीक्षा ग्रहण की, बारह वर्ष तक छद्मस्थावस्था में तप जप कर केवलज्ञान प्राप्त किया । सोलह वर्ष तक केवली अवस्था में विचरण कर, भगवान महावीर के निर्वाण से दो वर्ष पूर्व राजगृह के गुणशील चैत्य में मासिक अनशन कर चौहत्तर (७४) वर्ष की अवस्था में निर्वाण को प्राप्त हुए। वायुभूति-ये इन्द्रभूति के लघु भ्राता थे । बयालीस वर्ष की अवस्था में गृहवास को त्यागकर श्रमण धर्म स्वीकार किया था। दस वर्ष छद्मस्थावस्था मे रहे।" अठारह वर्ष केवली अवस्था में रहे । ६ सत्तर वर्ष की अवस्था मे राजगृह के गुणशील चैत्य में मासिक अनशन के साथ निर्वाण प्राप्त हुए । ये तीनों ही गणधर सहोदर थे, और वेदों आदि के प्रकाण्ड पण्डित थे । (४) आर्यव्यक्त-ये कोल्लागसंनिवेश के निवासी थे और भारद्वाज गोत्रीय ब्राह्मण थे ।१९ उनके पिता का नाम धनमित्र और माता का नाम वारुणी था ।२१ पचास वर्ष की अवस्था में पांच सौ छात्रों के साथ श्रमणधर्म स्वीकार किया,२२। बारह वर्ष तक छद्मस्थावस्था में रहे और अठारह वर्ष तक केवलीपर्याय पालकर२४, अस्सी वर्ष की अवस्था में मासिक अनशन के साथ राजगृह के गुणशोल चैत्य में निर्वाण को प्राप्त हुए । (५) सुधर्मा-ये कोल्लागसं निवेश के निवासी,२६ अग्नि वैश्यायन गोत्रीय ब्राह्मण थे ।२७ इनके पिता धम्मिल थे८ और माता महिला थी।२९
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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