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भगवान ऋषभदेव : प्रथम राजा
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माकार नीति- जब 'हाकार नीति' असफल होने लगी, तब माकार नीति का प्रयोग प्रारंभ हुआ ।" तृतीय और चतुर्थ कुलकर 'यशस्वी' और 'अभिचन्द्र' कुलकरों के समय तक लघु अपराध के लिए 'हाकार' नीति और गुरुतर अपराध के लिए 'माकार' नीति का प्रयोग चलता रहा । 'मत करो' इस निषेधाज्ञा को बहुत बड़ा दड समझा जाता था ।
धिक्कार नीति- जब माकार नीति भी विफल होने लगी, तब 'धिक्कार' नीति का प्रादुर्भाव हुआ । यह नीति पाँचवें प्रसेनजित्, छठे मरुदेव और सातवें कुलकर नाभि तक चलती रही। इस प्रकार खेद, निषेध और तिरस्कार ये मृत्यु दण्ड से भी अधिक प्रभावशाली सिद्ध हुए । क्योकि उस समय की प्रजा स्वभाव से सरल, मानस से कोमल, स्वयं शासित और मर्यादाप्रिय थी । ४६
अन्तिम कुलकर नाभि के समय यौगलिक सभ्यता तेजी से क्षीण होने लगी। ऐसे समय मे भगवान् ऋषभदेव का जन्म हुआ ।
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माता मरुदेवी ने जो चौदह महास्वप्न देखे थे, उनमें सर्वप्रथम ऋषभ ( वृषभ ) का स्वप्न था और जन्म के पश्चात् शिशु के उरु-स्थल पर ऋषभ का लांछन था, अत: उनका नाम ऋषभ रखा गया ।"
वंश उत्पत्ति - जब ऋषभदेव एक वर्ष से कुछ कम थे, उस समय पिता नाभि की गोद में बैठे हुए क्रीड़ा कर रहे थे। तब शक्रेन्द्र हाथ में इक्षु लेकर आया । बालक ऋषभदेव ने लेने के लिए हाथ आगे बढ़ाया। बालक ने इक्षुआकु (इक्षु भक्षण करना चाहा, इस दृष्टि से उनका वंश इक्ष्वाकुवंश के नाम से विश्व में विश्रुत हुआ
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विवाह परम्परा - यौगलिक परम्परा में एक ही माता के उदर से एक साथ जन्मा नर-नारी का युगल ही पति व पत्नी के रूप में परिवर्तित हो जाता था । सुनन्दा के भ्राता की अकाल-मृत्य हो जाने से ऋषभदेव ने सुनन्दा व सहजात सुमङ्गला के साथ पाणिग्रहण कर नई व्यवस्था का सूत्रपात भरत और ब्राह्मी को तथा सुनन्दा ने बाहुबली और उसके पश्चात् सुमंगला के क्रमश: अट्ठानवें पुत्र और
किया । ५० सुमंगला ने सुन्दरी को जन्म दिया।
हुए । ५१