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________________ २५८ भरत और बाहुबली का विवाह श्री ऋषभदेव ने यौगलिक धर्म को निवारण करने के लिए जब भरत और बाहुबली युवा हुँए तब भरत की सहजात ब्राह्मी का पाणिग्रहण बाहुबली से करवाया और बाहुबली की सहजात सुन्दरी का पाणिग्रहण भरत से करवाया ।५२ इन विवाहों का अनुसरण कर जनता ने भी भिन्न गोत्र में समुत्पन्न कन्याओ को उनके माता पिता आदि अभिभावकों द्वारा दान में प्राप्तकर पाणिग्रहण करना शुरू किया।५३ इस प्रकार एक नवीन परम्परा प्रारम्भ हुई । यहीं से विवाह प्रथा का आरम्भ हुआ। -~-~. प्रथम राजा पहले बताया जा चुका है कि ऋषभदेव के पिता 'नाभि' अन्तिम कुलकर थे। जब उनके नेतृत्व में ही धिक्कार नीति का उल्लघन होने लगा तब घबराकर यूगलिक श्री ऋषभदेव के पास पहुँचे, और उन्हें सारी स्थिति का परिज्ञान कराया। भगवान ऋषभदेव ने कहा-जो मर्यादाओं का अतिक्रमण कर रहे है, उन्हे दण्ड मिलना चाहिए और यह व्यवस्था राजा ही कर सकता है, क्योंकि शक्ति के सारे स्रोत उसमें केन्द्रित होते हैं । समय के पारखी कुलकर नाभि ने युगलिको की विनम्र प्रार्थना पर ऋषभदेव का राज्याभिषेक कर उन्हें 'राजा' घोषित किया ।५४ ऋषभ देव प्रथम राजा बने, और शेष जनता प्रजा। इस प्रकार पूर्व चली आ रही 'कुलकर' व्यवस्था का अन्त हुआ और नवीन राज्य व्यवस्था का प्रारम्भ । राज्याभिषेक के समय युगल समूह कमल पत्रों में पानी लाकर ऋषभदेव के पाद-पद्यों का सिंचन करने लगे। उनके विनीत स्वभाव को अनुलक्ष में रखकर नगर का नाम 'विनीता' रखा।५५ उसका दूसरा नाम अयोध्या भो है।५६ उस प्रान्त का नाम 'विनीत भूमि'५७ और 'इक्खाग भूमि'५८ पड़ा। कुछ समय के बाद वह मध्यदेश के नाम से विख्यात हुई । राज्य व्यवस्था का विकास-राजा बनने के पश्चात् ऋषभदेव ने राज्य की सुव्यवस्था हेतु आरक्षक दल को स्थापना की। जिसके अधिकारी 'उग्र' कहलाये। मंत्रि-मण्डल बनाया जिसके अधिकारी 'भोग' नाम से प्रसिद्ध हुए। सम्राट के समीपस्थ जन जो परामर्श प्रदाता थे वे 'राजन्य' के नाम से विख्यात हुए और अन्य राजकर्मचारी 'क्षत्रिय' नाम से विश्रुत हुए।
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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