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________________ २५६ यहां पहले कहे हुए के समान जन्म सम्बन्धी सारा वृत्त कहना। यावत् देव-देवियाँ आती हैं, वसुधाराएँ वर्षाती है आदि, किन्तु कारागृह से बन्दियो को मुक्त करना, कर माफ करना, परम्परानुसार जन्मोत्सव आदि प्रस्तुत वर्णन जो पूर्व पाठ में आया है वह यहां पर नहीं कहना चाहिए, क्योंकि उस युग में न कारागृह थे और न कर आदि ही थे। मल: उसमे णं कोसलिए कासवगुत्तेणं, तस्स णं पंच नामधिज्जा एवमाहिज्जंति,तं जहा-उसमे इवा, पढमराया इवा, पढमभिक्खाचरे इवा, पढमजिणे इ वा, पढमतित्थकरे इ वा ॥१६४॥ ___ अर्थ - कौशलिक अर्हत ऋषभ काश्यपगोत्रीय थे। उनके पाँच नाम इस प्रकार कहे जाते हैं (१) ऋषभ, (२) प्रथम राजा, (३) प्रथम भिक्षाचर, (४) प्रथम जिन और (५) प्रथम तीर्थंकर । भगवान ऋषभदेव के जन्म से पहले योगलिक काल था, किन्तु उसमें परिवर्तन होता जा रहा था। अनुक्रम से आवश्यकताएं तो बढ़ रही थीं, पर कल्पवृक्षों की शक्ति क्षीण होती जाने से आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं हो पारही थी। साधनाभाव से परस्पर संघर्ष होने लगा। अपराधी मनोवृत्ति जब व्यवस्था का अतिक्रमण करने लगी, तब अपराधों के निरोध के लिए कुलकर व्यवस्था आई, जिसने सर्वप्रथम दण्डनीति का प्रचलन किया।४३ तीन नीति :हाकार नीति-प्रथम कुलकर विमलवाहन के समय हाकार नीति का प्रचलन हुआ। उस युग का मानव आज के मानव की तरह अमर्यादित व उच्छृखल नही था। वह स्वभाव से संकोचशील एवं लज्जालु था। अपराध करने पर अपराधी को इतना ही कहा जाता– 'हा ! तुमने यह क्या किया ?' बस, यह शब्द-प्रताडना उस युग का महानतम दण्ड था। इसे सुनते ही अपराधी पानी-पानी हो जाता।" यह नीति द्वितीय कुलकर चक्षुष्मान के समय तक चलती रही।
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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