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________________ সমান যেমন : জম २५५ गाहा, सव्वं तहेवं, नवरं सुविणपाढगा, गत्थि, नाभी कुलगरो वागरेइ ॥१६२॥ अर्थ-कौश लिक अर्हत् ऋषभ तीन ज्ञान से युक्त थे। वह इस प्रकार'मैं च्युत होऊँगा', इस प्रकार वे जानते थे, इत्यादि सभी पहले भगवान् महावीर के प्रकरण में जो कहा है वैसा ही कहना, यावत् माता स्वप्न देखती है । वे स्वप्न इस प्रकार है गज, वृषभ आदि । विशेष यह कि वह प्रथम स्वप्न में वृषभ को मुख में प्रवेश करती हुई देखती है । (स्मरण रखना चाहिए कि अन्य सभी तीर्थंकरों की माताएँ प्रथम स्वप्न में मुख में प्रवेश करते हुए हाथी को देखती हैं) स्वप्न का सारा वृत्तान्त मरुदेवी नाभि कुलकर से कहती है । यहाँ स्वप्नों के फल बताने वाले, स्वप्न पाठक नही है । अतः स्वप्नों के फल को नाभि कुलकर स्वय कहते हैं। ---• जन्म मल : तेणं कालेणं तेणं समएणं उसमे अरहा कोसलिए जे से गिह्माणं पढमे मासे पढमे पक्खे चित्तबहुले तस्म णं चित्तबहुलस्स अट्ठमीपक्खेणं नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अद्धट्ठमाण य राइंदियाणं जाव आसाढाहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं आरोग्गा आरोग्गं पयाया, तं चेव जाव देवा देवीओ य वसुहारवासं वासिंसु सेसं तहेव चारगसोहणं माणुम्माणवडणं उस्सुकमाईयं ठिइपडियवज्ज सव्वं भाणियव्वं ॥१३॥ अर्थ- उस काल उस समय ग्रीष्म ऋतु का प्रथम मास, प्रथम पक्ष, अर्थात् जब चैत्र मास का कृष्ण पक्ष आया, तब चैत्र कृष्णा अष्टमी के दिन, नौ मास और ऊपर साढ़े सात रात्रि दिन व्यतीत होने पर, यावत् आषाढ़ा नक्षत्र का योग होते ही आरोग्यवाली माता ने आरोग्यपूर्वक कोशलिक अर्हत् ऋषभ नामक पुत्र को जन्म दिया ।
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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