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________________ २५० अकल्प का परिज्ञान कर उसने उत्कृष्ट भावना से प्रासुक विपुल घृत दान दिया। शुद्ध भावना के फलस्वरूप सम्यक्त्व की उपलब्धि हुई । ३९ (२) उत्तर कुरु में मनुष्य-वहाँ से धन्य सार्थवाह का जीव आयुपूर्णकर दान के प्रभाव से उत्तर कुरु मे मनुष्य हुआ। (३) सौधर्म देवलोक-वहाँ से धन्ना सार्थवाह का जीव सौधर्म कल्प में देव रूप में उत्पन्न हुआ। (४) महाबल-वहां से च्यवकर धन्ना सार्थवाह का जीव पश्चिम महाविदेह के गंधिलावती विजय में वैताढ्य पर्वत की विद्याधरश्रेणी के अधिपति शतबल राजा का पुत्र महाबल हुआ। महाबल के पिता को संसार से विरक्ति हुई पुत्र को राज्य देकर स्वय श्रमण बन गये। __एक बार सम्राट महाबल अपने प्रमुख अमात्यों के साथ राज-सभा मे बैठे हुए मनोविनोद कर रहे थे । तब स्वय बुद्ध अमात्य ने राजा को धर्म का मर्म समझाया, राजा पुत्र को राज्य देकर मुनि बना, दुष्कृत्यो की आलोचना की और बाईस दिन का संथारा कर समाधिपूर्वक आयु पूर्ण किया। (५) ललिताङ्ग देव-वहाँ से धन्ना सार्थवाह का जीव ऐशानकल्प में ललिताङ्ग देव बना, वहाँ स्वयप्रभा देवी मे वह इतना आसक्त हो गया कि स्वयं प्रभादेवी का च्यवन होने पर ललितांग देव उसके विरह मे आकुल-व्याकुल बन गया। तब स्वयं बुद्ध अमात्य के जीव ने जो उसी कल्प में देव हुआ था, आकर उसे सांत्वना दी। स्वयं प्रभादेवी भी वहा से च्यवकर मानव लोक में निर्यामिका नाम की बालिका हुई। केवली के उपदेश से श्राविका बनकर पुन: आयु पूर्णकर उसी कल्प में स्वयंप्रभा देवी हो गई। ललिताङ्गदेव पुनः उसमें आसक्त हो गया । जीवन के अन्त में नमस्कार महामत्र का जाप करते हुए आयु पूर्ण की। (६) वनजंघ-वहाँ से च्यवकर ललिताङ्गदेव का जीव जम्बूद्वीप की पुष्कलावती विजय में लोहार्गला नगर के अधिपति स्वर्णगंध सम्राट् की पत्नी लक्ष्मी देवी की कुक्षि में उत्पन्न हुआ। वज्रजघ नाम दिया गया।
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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