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भगवान् अषमदेव : पूर्वमव
२४६ पास विपूल वैभव था। वह सुदूर विदेशों में व्यापार करता था। एक बार उसने यह उद्घोषणा करवाई कि जिसे वसन्तपुर व्यापारार्थ चलना हो वह मेरे साथ चले। मैं उसे सभी प्रकार को सुविधाएं दूंगा। शताधिक व्यक्ति व्यापारार्थ उसके साथ प्रस्थित हुए।
धर्मघोष आचार्य शिष्यों सहित वसन्तपुर धर्म प्रचारार्थ जाना चाहते थे। विकट संकटमय पथ होने से बिना साथ के जाना असंभव था, उद्घोषणा सुन, आचार्य श्रेष्ठी के पास गये और माथ चलने की भावना अभिव्यक्त की।
श्रेष्ठी ने अपने भाग्य की सराहना करते हुए अनुचरों को आदेश दिया कि श्रमणों के लिए भोजनादि की सुविधा का पूर्ण ध्यान रखना। आचार्य ने श्रमणाचार का विश्लेषण करते हुए बताया कि श्रमण के लिए औद्देशिक, आधार्मिक आदि दोषयुक्त आहार निषिद्ध है। उसी समय एक अनुचर आम लेकर आया । श्रेष्ठी ने आम ग्रहण करने के लिए प्रार्थना की। आचार्य ने बताया कि जैन श्रमण के लिए सचित्त पदार्थ भी अग्राह्य है। श्रमण की कठोरचर्या को सुनकर श्रेष्ठी श्रद्धावनत हो गया।
___ आचार्य भी सार्थ के साथ पथ को पार करते हुए बढ़े जा रहे थे । वर्षा ऋतु आई । आकाश में उमड़-घुमड़कर घनघोर घटाएं छाने लगी और रिमझिम वर्षा बरसने लगी। उस समय सार्थ भयानक अटवी में से गुजर रहा था। मार्ग कीचड़ से व्याप्त था। सार्थ उसी अटवी में वर्षावास व्यतीत करने हेतु रुक गया । आचार्य भी निर्दोष स्थान में स्थित हो गये।
उस अटवी में सार्थ को संभावना से अधिक रुकना पड़ा, अत: साथ की खाद्य-सामग्री समाप्त हो गयी। क्षुधा से पीड़ित हो सार्थ के लोग अरण्य में कन्द मूलादि की अन्वेषणा कर जीवन व्यतीत करने लगे।
वर्षावास के उपसहार काल में धन्य सार्थवाह को अकस्मात् स्मृति आई कि मेरे साथ जो आचार्य प्रवर आये थे, मैंने उनकी सुध नहीं ली। उनके आहार की क्या व्यवस्था है ? वह शीघ्र ही आचार्य के पास गया, और आहार की अभ्यर्थना की। आचार्य ने उसे कल्प और अकल्प को समझाया, कल्प और