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________________ बहत् अजित : भगवान बमदेव २४७ कोडिसयसहस्सा विकता सेसं जहा सीयलस्स, तिवासअद्धनवमासाहियबायालीसवाससहस्सेहिं इच्चाइयं ॥१८॥ अर्थ-अर्हत् संभव को यावत् सर्व दु.खों से मुक्त हुए बीस लाख करोड़ सागरोपम जितना समय व्यतीत हो गया। शेष सभी शीतल के सम्बन्ध में कहा वैसे ही जानना चाहिए। अर्थात् बीस लाख करोड़ सागरोपम जितने समय में से बयालीस हजार तीन वर्ष और साढ़े आठ मास को कम करके जो समय आता है उस समय महावीर निर्वाण को प्राप्त हुए। मूल :-- अजियस्स णं जाव प्पहीणस्स पन्नासं सागरोवमकोडिसयसहस्सा विइक्कता, सेसं जहा सीयलस्स, तिवासअद्धनवमासाहियबायालीसदाससहस्सेहिं इच्चाइयं ॥१८॥ अर्थ-अर्हत् अजित को यावत् सर्व दुःखों से मुक्त हुए पचास लाख करोड़ सागरोपम बीत गए । इस समय में बयालीस हजार तीन वर्ष और साढ़े आठ मास कम करके जो समय आता है उस समय महावीर निर्वाण को प्राप्त हुए इत्यादि सभी पूर्ववत् समझना। ----. भगवान ऋषभदेव मूल : तेणं कालेणं तेणं समएणं उसहे णं अरहा कोसलिए चउ उत्तरासाढे अभीइपंचमे होत्था, तं जहा-उत्तरासाढाहिं चुए चइत्ता गब्भ वक्ते जाव अभीइणा परिनिव्वुए ॥१०॥ ___ अर्थ-उस काल उस समय कौलिक (कोशला-अयोध्या नगरी में हुए) अर्हत् ऋषभ चार उत्तराषाढा वाले और पांचवें अभिजित नक्षत्र वाले थे। अर्थात् उनके चार कल्याणकों में उत्तराषाढा नक्षत्र आया था। पांचवें कल्याणक के समय अभिजित नक्षत्र था। जैसे-कोशलिक अर्हत् ऋषभदेव
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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