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________________ कल्प सूध मास कम करके जो समय आता है उस समय महावीर का निर्वाण हुआ। इत्यादि सभी पूर्ववत् कहना चाहिए। मूल : सुमइस्स णं जाव प्पहीणस्स एगे सागरोवमकोडी सयसहस्से विइकते, सेसं जहा सीयलस्स, तिवासअद्धनवमासाहियबायालीससहस्सेहि इचाइयं ॥१८६॥ अर्थ-अर्हत् सुमति को यावत् सर्व दुःखोंसे पूर्णतया मुक्त हुए एक लाख करोड़ सागरोपम जितना समय व्यतीत हो गया, शेष सभी शीतल के सम्बन्ध में जो कहा वैसे ही जानना। वह इस प्रकार है- एक लाख करोड़ सागरोपम जितने समय मे से बयालीस हजार तीन वर्ष और साढ़े आठ मास कम करके जो समय आता है उस समय महावीर निर्वाण को प्राप्त हुए इत्यादि । मूल : अभिनंदणस्स णं जाव प्पहीणस्स दस सागरोवमकोडीसयसहस्सा विइक्कंता, सेसं जहा सोयलस्स, तिवासअद्धनवमासाहियबायालीससहस्सेहिं इच्चाइयं ॥ ७॥ अर्थ-अर्हत् अभिनन्दन को यावत् सर्व दु.खों से पूर्णतया मुक्त हुए दस लाख करोड़ सागरोपम जितना समय व्यतीत हो गया। शेष सभी जैसे शीतल के सम्बन्ध में कहा वैसे ही जानना। अर्थात् दस लाख करोड़ सागरोपम में से बयालीस हजार और तीन वर्ष तथा साढ़े आठ मास कम करने पर जो समय आता है, उस समय महावीर निर्वाण को प्राप्त हुए। इत्यादि सभी पूर्व के समान समझना। मूल : संभवस्स णं अरहओ जाव प्पहीणस्स वीसं सागरोवम
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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