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________________ अर्हत् सुपार्श्व पद्मप्रभ सुमति - प्रभिनंदन संभव ૧૪૧ अर्थ - अर्हत् चन्द्रप्रभ को यावत् सर्व दुःखों से मुक्त हुए एक सौ करोड़ सागरोपम जितना समय व्यतीत हो गया, शेष सभी जैसे शीतल अर्हत् के विषय में कहा वैसे जानना । वह इस प्रकार है- इन सौ करोड़ सागरोपम में से बयालीस हजार तीन वर्ष और साढ़े आठ मास व्यतीत होने पर जो समय आता है, उस समय महावीर निर्वाण प्राप्त हुए, और उसके पश्चात् नौ सौ वर्ष व्यतीत हो गए, इत्यादि पूर्ववत् समान समझना । मूल : सुपासस्स णं जाव प्पहीणस्स एगे सागरोवमकोडी सहस्से विइक ते, सेसं जहा - सीयलस्स, तं च इमं - तिवासअद्धनवमासाहियबायालीस सहस्सेहिं ऊणिया विइक्कता इच्चाइ ॥ १८४ ॥ अर्थ - अर्हत् सुपार्श्व को यावत् सर्व दुःखोंसे पूर्णतया मुक्त हुए एक हजार करोड़ सागरोपम जितना समय व्यतीत हो गया, शेष सभी जैसे शीतल के विषय में कहा है वैसे जानना । वह इस प्रकार है-एक हजार करोड़ सागरो पम में से बयालीस हजार तीन वर्ष और साढ़े आठ मास कम करके जो समय आता है उस समय भगवान् महावीर निर्वाण को प्राप्त हुए। इत्यादि सभी पूर्ववत् ही कहना चाहिए । मूल -- पउम पभस्स णं जाव प्पहीणस्स दससागरोवमकोडसहस्सा विक्कता, सेसं जहा -सीयलस्स, तिवासअद्धनवमासाहियबायालीससहस्सेहिं ऊणिया विइक्कता इच्चाइयं ॥ १८५ ॥ अर्थ - अर्हत् पद्मप्रभ को यावत् सर्व दुःखों से पूर्णतया मुक्त हुए दस हजार करोड़ सागरोपम जितना समय व्यतीत हो गया । शेष सारा वृत्त जैसे शीतल के सम्बन्ध मे कहा है वैसा जानना । वह इस प्रकार है- इन दस हजार करोड़ सागरोपम जितने समय में से बयालीस हजार, तीन वर्ष और साढ़े आठ
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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