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________________ २४४ एयम्मि समए वीरे निव्वुए, तओ वि य णं परं नव वाससयाई विकताई, दसमस्स य वाससयस्स अयं असीइमे संवच्छरे काले गच्छइ ॥१८१॥ __अर्थ-अर्हत् शीतल को यावत् सर्व दु:खोंसे पूर्णतया मुक्त हुए बयालीस हजार तीन वर्ष और साढ़े आठ मास न्यून एक करोड़ सागरोपम व्यतीत होने पर भगवान महावीर निर्वाण को प्राप्त हुए, और उसके पश्चात् नौ सौ वर्ष व्यतीत हो गये, उसके उपरान्त यह दशवीं शताब्दी का अस्सीवां वर्ष चल रहा है। मूल: सुविहिस्स णं अरहओ पुष्पदंतस्स काल जाव सव्वदुक्खप्पहीणस्स दस सागरोवमकोडीओ विइकताओ, सेसं जहा सीअलस्स, तं च इमं-तिवासअद्धनवमासाहिअबायालीसवाससहस्सेहिं ऊणिआ विइकता इच्चाइ ॥१८२॥ अर्थ--अर्हत् सुविधि को यावत् सर्व दुःखों से पूर्णतया मुक्त हुए दस करोड़ सागरोपम का समय व्यतीत हो गया, अन्य सभी वृत्तान्त जैसा शीतल अर्हत् के सम्बन्ध में कहा है वैसा जानना। वह इस प्रकार है-अर्थात् दस करोड सागरोपम में से बयालीस हजार और तीन वर्ष, तथा सार्ध अष्टमास कम करके जो समय आता है उस समय महावीर निर्वाण को प्राप्त हुए। उसके पश्चात् नौ सौ वर्ष व्यतीत हुए, इत्यादि सभी पूर्ववत् कहना। मल: चंदप्पहस्स णं अरहओ जाव प्पहीणस्स एगं सागरोवमकोडिसयं विइक्कत सेसं जहा सीतलस्स, तं च इमं-तिवासअद्धनवमासाहिय बायालीस (वास) सहस्सेहिं ऊणिगामिच्चाइ ।।१८३॥
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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