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महंत मर-कुन्थु-शान्ति-धर्म-अनन्त
अर्थ-अर्हत् मल्लि को यावत् सर्व दुःखों से पूर्णतया मुक्त हुए पैंसठ लाख चौरासी हजार नौ सौ वर्ष व्यतीत हो गये। अब उस पर दशवीं शताब्दी का अस्सीवें वर्ष का समय चल रहा है।३५
मल:
अरस्स णं अरहओ जाव प्पहीणस्स एगे वासकोडिसहस्से वितिकते, सेसं जहा मल्लिस्स । तं च एवं-पंचसर्टि लक्खा चउरासीइसहस्सा विइकता तम्मि समए महावीरो निव्वुओ, ततो परं नव सया विइकता, दसमस्स य वाससयस्स अयं असीइमे सवच्छरे गच्छइ । एवं अग्गओ जाव सेयंसो ताव दट्ठव्वं ॥१७३॥
अर्थ-अर्हत् जर को यावत् सर्व दुःखों से पूर्णतया मुक्त हुए एक हजार करोड़ वर्ष व्यतीत हो चुके । यहाँ सम्पूर्ण वृत्त श्री मल्लि भगवती के सम्बन्ध में कहा वैसा ही जानना । वह इस प्रकार कहा है-"अर्हत् 'अर' के निर्वाण गमन के पश्चात् एक हजार करोड़ वर्ष में श्री मल्लि अर्हत् का निर्वाण हुआ, और अर्हत मल्लि के निर्वाण के बाद, पैंसठ लाख चौरासी हजार वर्ष व्यतीत हो गये उस समय महावीर निर्वाण प्राप्त हुए। उनके निर्वाण के बाद नौ सौ वर्ष व्यतीत हो गये, उस पर यह दशवीं शताब्दी का अस्सीवां वर्ष चल रहा है। इसी प्रकार आगे श्रेयांसनाथ का इतिवृत्त आता है वहाँ तक समझना चाहिए । मूल :
कुंथुस्स णं अरहओ जाव प्पहीणस्स एगे चउभागपलिओवमे विइक ते पंचसहिं च सयसहस्सा सेसं जहा मल्लिस्स ॥१७४॥ __अर्थ-अहंत् कुन्थु को यावत् सर्व दुःखों से पूर्णतया मुक्त हुए एक पल्योपम का चतुर्थ भाग जितना समय व्यतीत हो गया। उसके पश्चात् पैंसठ लाख,