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________________ २४० अर्थ - अर्हत् नमि को कालगत हुए हुए पाँच लाख चौरासी हजार नौ सौ वर्ष शताब्दी का यह अस्सीबें वर्ष का समय चल रहा है । मूल : कल्प सून यावत् सर्वदुःखों से पूर्णतया मुक्त व्यतीत हो गये, उस पर दशमी मुनिसुव्वयस्स णं अरहओ कालगयस्स जाव प्पहीणस्स एक्कास वासस्यसहस्साइं चउरासी च वासहस्सा नव य वाससयाई विक्कताई दसमस्स य वाससयस्स अयं असीइमे संवच्छरे गच्छह || १७१ ॥ अर्थ - अर्हत् मुनिसुव्रत को यावत् सर्वदुःखो से मुक्त हुए ग्यारह लाख चौरासी हजार और नौ सौ वर्ष व्यतीत हो गए, उस पर यह दशवीं शताब्दी का अस्सीव वर्ष का समय चल रहा है । विवेचन - अर्हत् मुनिसुव्रत जैन परम्परा के बीसवे तीर्थकर हुए। उनका समय वर्तमान भारतीय कालगणना के साथ कुछ मेल नही खाता है, इसके कई कारण हो सकते हैं । किंतु उनकी ऐतिहासिकता तो इसी बात से सिद्ध है कि महापद्म चक्रवर्ती उन्ही के समय में हुए जिनका प्रधान नमुचि हुआ, जिससे विष्णुकुमार मुनि ने तीन चरण भूमि मांगकर श्रमणों का संकट मिटाया । नौवें बलदेव मर्यादा पुरुषोत्तम राम, वासुदेव लक्ष्मण एव प्रति वासुदेव रावण भो अर्हत् मुनिसुव्रत स्वामी के समय में हुए, ऐसा जैन इतिहासकारो का सुदृढ़ मत है । ४ 3 मूल -X मल्लिस णं अरहओ जाव प्पहीणस्स पन्नट्ठि वाससयसहस्साइं चउरासीइं वाससहस्साइं नव य वास सयाइ विइक्क - ताई, दसमस्स य वाससयस्स अयं असीइमे संवच्छरे काले गच्छइ ।। १७२ ॥
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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