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________________ २३२ अवस्था में गृहवास में रहे। उसके पश्चात् जिनके कहने का आचार है ऐसे लोकान्तिक देवों ने आकरके उनसे प्रार्थना की, संसार का कल्याण करने के लिए इत्यादि कथन जो पूर्व आ गया है वैसा ही यहाँ पर भी कहना। यावत् अभिनिक्रमण के पूर्व एक वर्ष तक दान दिया। ___ जब वर्षा ऋतु का प्रथम माम, द्वितीय पक्ष, अर्थात् श्रावण मास का शुक्ल पक्ष आया, उस श्रावण शुक्ला छ? के दिन, पूर्वाह्न के समय जिनके पीछे देव, मानव और असुरों की मण्डली चल रही है, ऐसे अरिष्टनेमि उत्तरकुरा नामक शिविका मे बैठकर यावत् द्वारिका नगरी के मध्य-मध्य में होकर निकलते हैं। निकलकर जिस तरफ रैवत नामक उद्यान है,२६ वहाँ आते है, आकर के उत्तम अशोक वृक्ष के नीचे, शिविका को खड़ी रखते है, खड़ी रखकर शिविका से उतरते है, उतरकर अपने ही हाथो से आभरण, मालाएँ और अलकारों को नीचे उतारते हैं। उतार कर अपने ही हाथों से पचमुष्टि लोच करते हैं, लोच करके, पानी रहित, षष्ठभक्त करके, चित्रा नक्षत्र का योग आते ही, एक देवदूष्य वस्त्र को लेकर हजार पुरुषों के साथ, मुडित होकर गृहवास को त्यागकर अनगारत्व को स्वीकार करते है। विवेचन-हिंसा को रोकने के लिए भगवान् बिना विवाह किये ही लौटे, किन्तु यह स्मरण रखना चाहिए कि लौटकर सीधे ही शिविका मे बैठकर प्रव्रज्या के लिए प्रस्थित नहीं हुए। यदि सीधे ही प्रस्थित होते हैं तो प्रश्न यह है कि उन्होंने वर्षीदान कब दिया ? क्या दूल्हा बनकर आने के पूर्व ही वर्षीदान दे चुके थे? नहीं। वे वहाँ से लौटकर घर पर आते है, एक वर्ष तक वर्षीदान देते हैं। उसके पश्चात् एक हजार पुरुषों के साथ प्रव्रज्या ग्रहण करत हैं । सामायिक चरित्र ग्रहण करते हुए प्रभु को मनः पर्यव ज्ञान उत्पन्न हो जाता है। इस बीच प्रेममूर्ति राजीमती अरिष्टनेमि की अपलक प्रतीक्षा करतो रही। वह निरन्तर यह सोचती रही कि भगवान् मेरी अवश्य ही सुध लेंगे। पर उसकी वह भावना पूर्ण नहीं हो सकी । बारह मास तक उसके अन्तर्ह दय में विविध संकल्प विकल्प उबुद्ध होते रहे, जिन्हें कवियों ने बारह मासा के के रूप में चित्रित किया है।
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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