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________________ २३१ बहत् अस्ष्टिनेमि : बीका राजीमती के चेहरे पर जो गुलाबी खुशियां छाई हुई थी, वह प्रभु के वापस लौट जाने पर गायब हो गई। वह अपने भाग्य को कोसने लगी। उसे बहुत ही दुःख हुआ, अरिष्टनेमि उसके हृदय में बसे हुए थे। माता, पिता और सखियों ने समझाया 'अरिष्टनेमि चले गए तो क्या हुआ बहुत से अच्छे वर प्राप्त हो जायंगे।' उसने दृढता से कहा-"विवाह का बाह्य रीतिरस्म (वरण) भले ही न हुआ हो किन्तु अन्तरंग हृदय से मैंने वरण कर लिया है, अब मैं आजन्म उसी प्रभु की उपासना करूंगी। - वीक्षा मल: __अरहा अरिहनेमी दक्खे जाव तिनि वाससयाई अगारवासमझे वसित्ता णं पुणरवि लोयंतिएहिं जीयकप्पिएहिं देवेहि तं चेव सव्वं भाणियव्वं जाव दायं दाइयाणं परिभाएत्ता जे से वासाणं पढमे मासे दोच्चे पक्खे सावणसुद्धै तस्स णं सावणसुद्धस्स छट्ठोपक्खेणं पुव्वण्हकालसमयंसि उत्तरकुराए सीयाए सदेवमणु यासुराए परिसाए अणु गम्ममाणमग्गे जावबारवईए नगरीए मज्झ निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव वय उज्जाणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता असोगवरपायवस्स अहे सीय ठावेइ, सीयं ठवित्ता सीयाए पच्चोरुहइ, सीयाए पचोरुहित्ता सयमेव आभरण मल्लालंकारं ओमुयइ, ओमुइत्ता सयमेव पंचमुट्ठियं लोय करेइ, करित्ता छ?र्ण भत्तेणं अपाणएणं चित्ताहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं एगं देवदूसमादाय एगेणं पुरिससहस्सेणं सद्धिं मुण्डे भवित्ता अगाराओ अणगारियौं पव्वइए ॥१६४॥ अर्थ-अर्हत् अरिष्टनेमि दक्ष थे, यावत् वे तीन सौ वर्ष तक कुमार
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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